जानिए क्यों मनाया जाता है उगादी पर्व और क्या है इसकी पूजन विधि
उगादी पर्व भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. इसे विशेष रुप से आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मनाया जाता है. ब्रह्मपुराण के अनुसार इस त्यौहार को चैत्र मास के प्रथम दिन मनाया जाता है.
उगादी पर्व भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. इसे विशेष रुप से आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मनाया जाता है. ब्रह्मपुराण के अनुसार इस त्यौहार को चैत्र मास के प्रथम दिन मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की और सूर्य की पहली किरण भी इसी दिन उत्पन्न हुई थी. इस साल यह त्योहार 18 मार्च को मनाया जाएगा. यह त्योहार नए साल की शुरुआत के रूप में जाना जाता है. इससे जुड़े कई तरह के मिथक भी हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने पूरी दुनिया को नष्ट कर दिया था और बाद में इस सुंदर दुनिया का निर्माण किया गया.
यह भी पढ़ें – Gudi Padwa 2018: जानें क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा, क्या है इसका महत्व
क्या है इसकी पूजन विधि
भगवान को खुश करने के लिए इस दिन मंदिरों में विशेष रुप से पूजा-अर्चना की जाती है. यह दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के रूप में भी मनाया जाता है. इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय प्राप्त की थी. इसके उत्सव के रूप में भी उगादी मनाया. हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्र का आरंभ इसी दिन से होता है. देश में इस त्यौहार को अलग- अलग नामों से जाना जाता है. कर्नाटक में इसे गुड़ी पड़वा कहते हैं. इस त्यौहार को पूरे राज्य में उत्साह के साथ मनाया जाता है.
यह भी पढ़ें – चैत्र नवरात्र विशेष : राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठ : फिल्मों में भी हुआ है महिमा का बखान
उगादी की पूजा-विधिः
उगादी के दिन एक खास विधि से पूजा-अर्चना का जाती है. इस दिन ब्रह्म मूहूर्त में उठकर तथा नित्य कामों से निवृत्त होकर अपने शरीर पर बेसन और तेल का उबटन लगाकर और नहाकर शुद्ध होते हैं. इसके बाद हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर भगवान ब्रह्मा के मंत्रों का उच्चारण करके पूजा करते हैं. इस त्यौहार के दिन कुछ लोगों का मानना है कि सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान करने के लिए रंगोली या हल्दी, कुमकुम के साथ एक स्वास्तिक चिन्ह बनाना चाहिए. कुछ पंडितों के अनुसार पूजन का शुभ संकल्प कर एक चौकी या बालू की वेदी का निर्माण करते हैं. इसके बाद उसमें साफ सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाते हैं तथा उस पर ब्रह्माजी की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करते हैं. इसके बाद गणेशाम्बिका की पूजा करते हैं और फिर ऊं ब्रह्मणे नमः के मंत्र का जाप करते हैं.