वैद्य धन्वंतरि : आयुर्वेद और शल्य शास्त्र के जनक : धनतेरस पर खास
धन्वंतरि दिवस कहिये या धनतेरस इस दिन से दीपावली के पर्व की शुरुआत हो जाती है. कौन है भगवान धन्वंतरि. आइये जानते हैं-
धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है. उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया. धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धन्वंतरि संहिता ही उपलब्ध हो पाई है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है. आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था. बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया.
धन्वंतरि का जन्म
धन्वंतरि का जन्म लगभग 7 हजार ईसापूर्व के बीच हुआ था. वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे. उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण अनुसन्धान किये थे. उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें एकत्रित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए. दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था. धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है. उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है. अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था.
उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था. धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है. उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं. आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है.
धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं. रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है. धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं. आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरि था.
हिन्दू धर्म में धन्वंतरि देवताओं के वैद्य माने गए हैं. धन्वंतरि महान चिकित्सक थे. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनवंतरि भगवान विष्णु के अवतार समझे गए हैं. समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि का पृथ्वी लोक में अवतरण हुआ था.
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भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:
ॐ धन्वंतराये नमः॥
आरोग्य प्राप्ति हेतु धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है.
पवित्र धन्वंतरि स्तोत्र :
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः.
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम.
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
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