वरदराज स्वामी मंदिर : यहाँ होते हैं भगवान जलमग्न, देते हैं चालीस साल में एक बार दर्शन
प्रायः देखा जाता है कि मंदिर में भगवान की मूर्तियों की स्थापना की जाती और उन्हें विराजित किया जाता है. श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए सदैव आते रहते हैं. लेकिन एक ऐसा मंदिर भी है जिसके मूल भगवान के दर्शन आप अपने जीवन काल में दो या तीन बार ही कर सकते हैं. यह मंदिर तमिलनाडु में स्थित है. ऐसा इसलिए क्योंकि जलमग्न रहने वाली भगवान विष्णु की इस विशालकाय मूर्ति को 40 साल में एक बार पानी से बाहर निकाला जाता है और सिर्फ 48 दिनों के लिए भक्तों को दर्शन दिखाकर फिर से 40 सालों के लिए जलमग्न कर दिया जाता है.
देश के जाने-माने कांचीपुरम के वरदराज स्वामी मंदिर में भगवान के दर्शन शुरू हो चुके हैं और 17 अगस्त को श्रद्धालु आखिरी बार भगवान के दर्शन कर पाएंगे.इससे पूर्व भगवान् विष्णु के दर्शन साल 1979 में हुए थे और अब इसके उपरांत भगवान् के दर्शन 2059 में होंगे।
क्या है इस मूर्ति के पीछे का रहस्य
इस जलमग्न भगवान को अत्ति वरदर के नाम से जाना जाता है और मान्यता है कि भगवान विष्णु की इस मूर्ति की स्थापना खुद ब्रम्हा जी ने की थी. पुराणों में काँचीपुरम का नाम हस्तगिरी बताया गया है, भगवान ब्रह्मा ने भू लोक में भगवान विष्णु के दर्शन करने की इच्छा जताई और उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप शुरू किया.कहा जाता है कि तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने जल रूप में राजस्थान के पुष्कर में और वन रूप में उत्तर प्रदेश में गोमती नदी के किनारे बसे वन क्षेत्र नेमिसारण्य में दर्शन दिए लेकिन ब्रह्मा और भू लोक में रहने वाले दूसरे देवता और ऋषि संतुष्ट नहीं हो पाए।
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अंजीर की लकड़ी से निर्मित है मूर्ति
ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ब्रह्मा ने एक बार फिर श्रीमन्न नारायण से दर्शन देने की गुहार लगाई, तब विष्णु ने कहा कि हस्तगिरी में वे अश्वमेघ यज्ञ करें, इसी यज्ञ के दौरान भगवान विष्णु ने अग्नि रूप में दर्शन दिए और ब्रह्मा की विनती पर विश्वकर्मा से कहकर अंजीर जिसे तमिल में अत्ति कहा जाता है की लकड़ी से 9 फीट की मूर्ति बनवाई और तब के हस्तगिरी और अब के कांचीपुरम में इस मूर्ति की स्थापना हो गई. स्थल पुराण के मुताबिक, “एक बार भगवान विष्णु मुख्य पुजारी के सपने में आए और उनसे कहा कि यज्ञशाला से उद्भव होने की वजह से उसकी गर्मी से उनका बदन बहुत जलता है इसीलिए या तो 3 वक्त हजार पानी के कलशों से उनका अभिषेक किया जाए या फिर मंदिर के सरोवर में उन्हें जलमग्न कर दिया जाए।”
40 साल में एक बार मिल पाता है दर्शन
मुख्य पुजारी के पास तीनों वक्त उनका जलाभिषेक करने के संसाधन नहीं थे इसीलिए उन्होंने भगवान की मूर्ति को मंदिर के तालाब में जलमग्न करने का फैसला किया. कहते हैं कि भगवान के निर्देश पर मंदिर से 20 किलोमीटर दूर मिली दूसरी मूर्ति की स्थापना मूल मूर्ति के तौर पर कर दी गई. लेकिन मूल भगवान के दर्शन हर कोई करना चाहता था इसीलिए ये फैसला लिया गया कि 40 साल में एक बार सिर्फ एक मंडल यानि 48 दिनों के लिए अत्ति वरदर को मंदिर के सरोवर से बाहर निकाला जाएगा और श्रद्धालु 48 दिनों तक दर्शन का लाभ ले पाएंगे. कहा जाता है कि पहले सरोवर के अंदर सीधे ही भगवान की मूर्ति को रखा गया था लेकिन जब मुगलों ने भारत में घुसपैठ की उस वक्त मूर्ति को बचाने लिए चांदी का बड़ा बॉक्स बनाकर मूर्ति को उसमें डालकर पानी के नीचे रख दिया गया तब से उसी चाँदी के बॉक्स में ही मूर्ति जलमग्न रहती है।
150 व्हील चेयर और 10 बैट्री कार की व्यवस्था
श्रद्धालुओं को भगवान अति वरदर के दर्शन में किसी तरह की दिक्कत न हो इसलिए प्रशासन की तरफ से यहां 150 व्हील चेयर और 10 बैट्री कार की व्यवस्था की गई है। भगवान के दर्शन के लिए यहां लोगों को पास जारी किए जा रहे हैं। यहां मुफ्त दर्शन के अलावा 50 से 500 रुपये तक के दर्शन टोकन भी जारी किए जा रहे हैं। इसके तहत लोगों को दर्शन की अलग-अलग सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। 500 रुपये का सबसे महंगा टोकन वीआईपी दर्शन के लिए है। इसके अलावा मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो बैगेज स्कैनर लगाए गए हैं। मंदिर की सुरक्षा के लिए कुल 2600 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई गई है।