वास्तुशास्त्र और फेंगशुई दोंनों के सिद्धांत पूरे विश्व में समान रूप से लागू होते हैं। क्योंकि ये दोनों शास्त्र सूर्य की किरणों एंव पृथ्वी पर बहनेवाली चुम्बकीय तरंगों पर आधारित हैं।
आज के समय में वास्तु का प्रचलन लोगों में काफी हैं, ठीक वैसे ही फेंगशुई भी लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुका है। आज हम आपको इन दोनों के बीच की समानता के बारे में बताएंगे।
लाल रंग का प्रयोग
फेंगशुई में घर के मुख्य द्वार पर लाल रंग के प्रयोग की सलाह दी जाती है। इसके पीछे कहा जाता है कि उस घर में रहने वाले लोगों की प्रसिद्धि बढ़ती है।
वहीं वास्तुशास्त्र कहता है कि मुख्य द्वार पर स्वास्तिक, ओम, शुभ-लाभ लिखने में भी लाल रंग का ही प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि यह शुभ माना जाता है।
आपने अक्सर मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को सिंदूर पर भी लाल रंग का प्रयोग देखा होगा। देवी को लाल चोला व चुनरिया पहनाई जाती है.
चीन में भी भगवान को लाल कपड़ों से सजाया जाता है, लाल कागज व लाल रंग के बल्ब मंदिर में लगाए जाते हैं।
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सफाई पर जोर
फेंगशुई कहते है कि घर के अंदर कबाड़ रखना शुभ नहीं होता है और सफाई पर अत्यधिक जोर दिया जाता है।
ये बात तो वास्तु शास्तु शास्त्र भी कहता है कि घर में गदंगी होने पर नकरात्मक ऊर्जा का वास होता है।
फेंगशुई में प्लेसमेंट ऑफ फर्नीचर के बारे में विस्तार से बताया गया है और वास्तुशास्त्र में सही स्थान पर दरवाजा रखने से प्लेसमेंट ऑफ फर्नीचर अपने आप सही हो जाता है।
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हिंसक तस्वीरों की मनाही
फेंगशुई में कहा गया है कि घर में कभी भी हिंसक तस्वीरें न लगाएं। तस्वीर अकेले की न हो, जोड़ों की हो।
भारत में भी महाभारत की तस्वीरें या हिंसक जानवरों की तस्वीरें लगाना अशुभ माना जाता है। इसलिए लोगों को ज्यादातर सीता-राम, शिव-पार्वती और राधा-कृष्ण आदि की जोड़े से ही तस्वीर लगाने की सलाह दी जाती है।
दिशाओं का महत्त्व
वास्तुशास्त्र में स्नानगृह के बारे में अवश्य बताया गया है कि यह पूर्व दिशा में होना चाहिए।
भारत व चीन दोनों जगहों पुराने समय के लोग शौच के लिए घर से दूर जंगलों में जाया करते थे।
दोनों ही शास्त्रों में ईशान कोण और पूर्व दिशा को बहुत ही पवित्र माना गया है और इसे साफ-स्वच्छ रखने की सलाह दी गई है। अत: दोनों शास्त्रों के अनुसार, ईशान कोण में टॉयलेट नहीं बनाने का निर्देश स्पष्ट होता है।
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