विवाह पंचमी – राम जानकी के विवाह का महोत्सव
सनातन धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। विवाह को दो आत्माओं का मिलन कहा गया है । विवाह संस्था की स्थापना कुछ विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद में वर्णित सूर्य और सूर्या के विवाह से मानी जाती है तो कुछ विद्वानों का कहना है कि विवाह संस्था की स्थापना उत्तर वैदिक काल में श्वेताश्वर उपनिषद् के रचयिता श्वेतकेतु ने की थी। जो भी हो लेकिन सनातन वांड्मय में दो विवाहों को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली है। पहली है शिव पार्वती विवाह और दूसरी है राम जानकी विवाह। दोनों ही विवाह आज भी जनश्रुतियों और लोक संगीत में अमर रहे हैं। आज हम राम जानकी विवाह की चर्चा करेंगे जिसे विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। साल 2018 में विवाह पंचमी 12 दिसंबर को अगहन मास के शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाएगा।
राम जानकी विवाह महोत्सव (Ram Janki vivah)
इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का विवाह माता जानकी से हुआ था। इस दिन विवाह करने को लेकर भी कई विवाद है । कुछ का मानना है कि इस दिन विवाह करने से सारी अड़चने दूर हो जाती है तो कुछ का कहना है कि इस दिन विवाह इस लिए नहीं करना चाहिए क्योंकि विवाह के बाद राम और जानकी कभी सुख से नहीं रह पाए और दोनों को वियोग भी झेलना पड़ा। इन विवादों में पड़ने से अच्छा ये है कि इस राम जानकी के विवाह से संबंधित घटनाओं का आज विश्लेषण किया जाए।
वाल्मिकि रामायण के मुताबिक जब राम ने शिव का धनुष भंग कर दिया तो जनक ने उनसे जानकी से विवाह करने का आग्रह किया। ध्यान देने की बात ये है कि वाल्मिकि रामायण में किसी भी प्रकार के स्वयंवर का कोई उल्लेख नहीं है जबकि तुलसी रचित रामचरितमानस में बकायदा स्वयंवर का जिक्र है। वाल्मिकि रामायण के मुताबिक जब राम और लक्ष्मण ताड़का और सुबाहु को मार देते हैं तो विश्वामित्र उन्हें मिथिला में शिव के धनुष को दिखाने के लिए ले जाते हैं। वहीं राम को जब ये पता चलता है कि इस धनुष को कोई नहीं उठा सकता है तो वो अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए इस धनुष को भंग करते हैं। इसके बाद ही उन्हें माता जानकी से विवाह करने का प्रस्ताव मिलता है। जब विवाह की तैयारी पूरी हो जाती है तो मंडप पर जनक राम को सीता को अपनाने के लिए कहते हैं। पाणिग्रहण करने के लिए कहते हैं। वाल्मिकि रामायण में जनक के इस अनुरोध को लेकर विद्वानों में बहुत ही मतभेद हैं। तो सबसे पहले देखिए कि जनक राम से कहते क्या हैं…
इयम सीता मम सुता सह धर्मचरी तव।
प्रतीच्छ च एनाम भद्रम ते पाणिम गृहिष्व पाणिना।।
(अर्थात यह….सीता….मेरी पुत्री… आपके सारे कर्तव्यों को पूरा करेगी…इसे आप पुन: प्राप्त करें….इसके हाथों को अपने हाथो में लेकर आप पाणिग्रहण करें)
देखने में यह श्लोक किसी भी सामान्य विवाह के पाणिग्रहण संस्कार की तरह लगता है लेकिन विद्वानों ने इयम अर्थात ‘यह’… मम अर्थात ‘मेरी’.. और तव अर्थात ‘आप’.. को लेकर काफी गूढ़ अर्थ निकाले हैं। देखिए इस श्लोक के कितने अर्थ हैं-
‘इयम सीता मम सुता’...यह सीता मेरी बेटी है जिससे आप विवाह करें। जनक और उनके भाई की कुल तीन और बेटियां थी.. जनक जानते थे कि राम के पिता ने तीन विवाह किये हैं जबकि जनक स्वयं एक पत्नीव्रता थे। सो जनक यहां यह स्पष्ट करते हैं कि इयम सीता.. यह सीता ही केवल मात्र आपकी पत्नी होगी।बाकि पुत्रियों का विवाह आपसे नहीं होगा। यानि राम के एक पत्निव्रता के संकल्प की शुरुआत यहीं से होती है।मतलब जनक के यहां की एक पत्नी परंपरा का समावेश रघुकुल में हो रहा है।
दूसरा अर्थ है.. इयम सीता मम सुता… यह सीता है…ये मेरी पुत्री तो है लेकिन ये सीता है .. अर्थात भूमिजा अर्थात पृथ्वी से इसका उद्भव हुआ है । ये मेरी तनया अर्थात मेरे शरीर से उत्पन्न नहीं है हालांकि मेरी सुता है मतलब मैंने इसे पुत्री की तरह पाला है । और आप सूर्य कुल के हैं। सूर्य का वास आकाश में है जबकि सीता पृथ्वी से उत्पन्न है और आप आकाश से अवतरित हुए है। पृथ्वी और आकाश का यह मिलन होने जा रहा है। इसलिए आप के लिए सीता ही एकमात्र पत्नी हो सकती है।
विद्वानों का कहना है कि राम इस पर कहते हैं कि इसका कुल क्या है । ये तो अकुलीन है। इसके माता पिता का पता नहीं है । तो जनक कहते हैं कि यह मेरी सुता है । मैने इसमें विदेह कुल के सारे संस्कार डाले हैं इसलिए यह जनक कुल की ही मानी जाएगी। और यह आपकी धर्म चरी है। अर्थात आप इस संसार में जिस भी प्रयोजन से आए है सीता के बिना वो पूरा नहीं हो सकेगा। आपका अवतार लेना व्यर्थ जाएगा। यहां इशारा रावण के द्वारा सीता का अपहरण और राम के द्वारा रावण को मार कर संसार में मर्यादा की स्थापना का लक्ष्य पूरा करना है जो बिना सीता के अपहरण के पूरा नहीं हो सकता है।
तीसरी लाइन है प्रतीच्छ च एनाम .. अर्थाप आप सीता को पुन ग्रहण करें। पुन ग्रहण करने की बात क्यों। तो इसका जवाब है कि चूंकि राम और सीता विष्णु और लक्ष्मी के अवतार है । विष्णु और लक्ष्मी पहले से शादी शुदा है तो फिर दोबारा विवाह संभव नहीं। इसलिए पुन ग्रहण करने की बात कही गई है। यहां जनक राम को उनके विष्णु होने के साथ साथ सीता के लक्ष्मी होने के देवत्व से भी अवगत कराते हैं ताकि राम सीता को केवल भूमि से उत्पन्न एक सामान्य नारी न समझें। फिर आगे जनक कहते हैं कि सीता और आप पाणिग्रहण का संस्कार संपन्न करें। विद्धानों के मुताबिक राम प्रश्न करते हैं कि जब मैं विष्णु हूं और सीता लक्ष्मी और हमारा विवाह पहले ही हो चुका है तो फिर पाणिग्रहण संस्कार की आवश्यकता ही क्या है । सीता मेरे साथ चल पड़े और मेरे साथ ही रहे। तो जनक इसके लिए भी तर्क देते हैं। जनक कहते हैं कि पाणिग्रहण इस लिए क्योंकि आप नर रुप में अवतरित हुए हैं और मानव जगत की मर्यादा को स्थापित करने का उद्धेश्य लेकर आए है । इस लिए मानव जगत के रीति रिवाजों को मानना आपका धर्म है। चूंकि मानव जगत में पाणिग्रहण विवाह संस्कार का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है इस लिए आपको भी इस मर्यादा के तहत ही विवाह करना होगा।
इसके बाद राम तैयार हो जाते हैं और माता जानकी के साथ उनका विवाह धूमधाम से होता है। यहां गौर करने वाली बात यही है कि जनक के यहां शास्त्रार्थ की परंपरा थी । इसी शास्त्रार्थ की परंपरा के तहत वो राम को समझाने में सफल हो जाते हैं और राम सीता के देवत्व से परिचित होते हैं। राम जानकी विवाह महोत्सव (ram janki vivah)
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लेखक – अजीत कुमार मिश्रा
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