वृंदावन में शुरू हुआ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव : 108 श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ
भागवताचार्य श्री देवकीनंदन ठाकरजी के सानिध्य में 27 अगस्त से 03 सितंबर 2018 तक प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से वृंदावन में 108 श्रीमद् भागवत कथा एवं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। कथा के पहले दिन महाराज जी ने भागवत कथा के महात्यम का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
भागवत कथा के प्रथम दिवस की शुरुआत दीप प्रज्वलन, भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई ।
भागवत कथा के प्रथम दिवस पर कथा पंडाल में आचार्य श्री बदरीश जी, श्री नेत्रपाल जी महाराज, श्री अशोक शास्त्री जी महाराज, श्री बिपिन बापू जी, विप्र समाज को लेकर चलने वाले श्री नागेंद्र जी महाराज, श्री उदेन शर्मा जी, श्री सुधीर शुक्ला जी और ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष श्री शैलजा कांत मिश्र जी ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई एवं अपने विचार व्यक्त किए ।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की ब्रज के महात्यम की बात बताते हुए कहा कि ब्रज भूमि जिसमें हम वास कर रहे हैं यह इतना आसान नहीं है, इसका वर्णन इतना सुंदर है । जिस भूमि में ब्रह्मा जी अपनी मर्जी से नहीं आ सकते, चाह कर भी अपनी मर्जी से यहां जन्म नहीं ले सकते उस ब्रज में हम और आप बैठे हैं। इस ब्रज का महात्यम क्या है, आते तो यहां बहुत से लोग है लेकिन वास नहीं कर सकते। वैसे तो यहां आसान भी आसान नहीं है, अगर आएं है तो निश्चित है कुछ अच्छा काम किया होगा। किशोरी की अहित की कृपा है की आपको यहां पर वास मिल रहा है।
महाराज श्री ने आगे कहा कि सच चित आनंद सच्चिदानंद, दैहिक, दैविक, भौतिक त्रितापों को जन्म देने वाले, उनका पालन और संहार करने वाले ऐसे सच्चिदानंद परमात्मा को हम नमन करते हैं। महाराज श्री ने कहा कि भागवत क्या है ? भागवत का अर्थ क्या है ? भागवत कहते किसको हैं….भगवान के भक्त को ही भागवत कहते हैं। इस भागवत के बारह के बारह स्कंदों को आप पडिए, उन बारह के बारह स्कंदों में भक्तों की विशेषता का ही वर्णन किया गया है। वो इसलिए क्योंकि भक्त भगवान को नमन करता है और भगवान भक्तों को नमन करते है, अगर भगवान ना हों, संत ना हों, भक्त ना हों, तो भगवान को प्रतिपादित कौन करेगा, भगवान को भगवान घोषित कौन करेगा ? उन्होंने आगे कहा कि आप किसी तीर्थ में जाते हो, वहां जल तत्व होता है कोई कुंड, कोई सरोवर होता है, प्रत्येक तीर्थ में होता है, कहीं ना कहीं मूर्ति के रूप में भगवान मौजूद रहते हैं लेकिन वो तीर्थ तीर्थ नहीं है जिस तीर्थ में संत नहीं हैं, भक्त नहीं हैं। हर वो तीर्थ श्रेष्ठ है जिस तीर्थ में संत जाकर वास करते हैं । संत वास करेंगे तो पूजा पाठ होगी, भजन होगा, भजन होगा तो उस स्थान का प्रभाव बढ़ता चला जाएगा और जितना प्रभाव बढ़ता चला जाएगा उतने लोगों की आस्था बढ़ती चली जाएगी ।
महाराज श्री ने कहा कि आप गौशाला में चले जाइए वहां गोबर भी पड़ा है, गौमूत्र भी पड़ा है, मक्खियां भी भिन भिना रही हैं लेकिन गौशाला में जाओगे तो आप उसको पवित्र ही कहोगे क्यों. क्योंकि वो वेद प्रमाणित बात है की जहां गऊ रहती है वहां 33 करोड़ देवी देवता तो गऊ में ही वास करते हैं, वह सुंदर और पवित्र स्थान है। पवित्रता यह है जिसे वेद प्रतिपादित करें।
महाराज श्री ने कहा कि हमे अपने कर्मों में सुधार करना चाहिए या फिर अपने कर्मों को ऐसा बना देना चाहिए जो कर्म ठाकुर को प्रिय लगते हों, गोविंद को प्रिय लगते हों, प्रियाकांत जू को प्रिय लगते हों, हमे वो काम करना चाहिए जिससे वो प्रसन्न हों। भागवत सुनने का मतलब ये नहीं है की सात दिन सुने और फिर बदलने की कोई कोशिश ही नहीं ।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की एक बात सनकादिक ऋषि और सूद जी महाराज विराजमान थे तो उन्होंने ये प्रश्न किया की कलियुग के लोगो का कल्याण कैसे होगा ? आप देखिये किसी भी पुराण में किसी और युग के लोगो की चिंता नहीं की पर कलयुग के लोगो के कल्याण की चिंता हर पुराण और वेद में की गई कारण क्या है क्योकि कलयुग का प्राणी अपने कल्याण के मार्ग को भूल कर केवल अपने मन की ही करता है जो उसके मन को भाये वह बस वही कार्य करता है। और फिर कलियुग के मानव की आयु कम है और शास्त्र ज्यादा है तो फिर एक कल्याण का मार्ग बताया भागवत कथा। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है श्री यानी जब धन का अहंकार हो जाए तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा।
व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनो। केवल सुनो ही नहीं बल्कि भागवत की मानों भी। सच्चा हिन्दू वही है जो कृष्ण की सुने और उसको माने , गीता की सुनो और उसकी मानों भी , माँ – बाप, गुरु की सुनो तो उनकी मानो भी तो आपके कर्म श्रेष्ठ होंगे और जब कर्म श्रेष्ठ होंगे तो आप को संसार की कोई भी वस्तु कभी दुखी नहीं कर पायेगी। और जब आप को संसार की किसी बात का फर्क पड़ना बंद हो जायेगा तो निश्चित ही आप वैराग्य की और अग्रसर हो जायेगे और तब ईश्वर को पाना सरल हो जायेगा ।
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।