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Walking Meditation: A technique for focus and positive thoughts.

वर्तमान समय में कई लोग इस बात को लेकर संशय में रहते हैं, कि ‘चलित ध्यान’ अथवा ‘नित्य ध्यान’ या ‘Walking Meditation’ क्या होता है। उनका मानना है कि ध्यान तो बैठ कर ही किया जाता है, फिर चलते फिरते ध्यान कैसे किया जाए। जैन, बौद्ध, योग एवं वेदांत जैसे सभी प्राचीन दर्शनों में चलित-ध्यान अथवा नित्य ध्यान का  वर्णन मिलता है।

Photo Courtesy: http://www.self-renewal.com/
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एक समय भगवान् बुद्ध अपने भिक्षुक शिष्यों के साथ वन विहारों से गुजर रहे थे। सैकड़ों भिक्षुक, तथागत के पद-चिन्हों का अनुसरण करते हुए चल रहे थे। तभी अचानक! भगवान् बुद्ध रुके और पीछे  मुड़ कर सभी शिष्यों पर अपनी नज़र दौडाते हुए एक शिष्य पर उनकी नजर रुक गई। भगवान् बुद्ध ने उस शिष्य को देखते हुए कहा “राहुल तुम क्या सोच रहे हो ? मैं कुछ समय से अपने  शिष्य समुदाय से कुछ नकारात्मक तरंगों को पकड़ रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ कि कोई अपने नकारात्मक विचारों को नियंत्रित करने में असफल हो रहा है। ” तब राहुल ने दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् बुद्ध से कहा ” हाँ भगवन ! मैं काफी समय से नकारात्मक विचारों के वशीभूत हूँ। आपके इस धम्म-पथ पर चलना मेरे लिए कठिन हो रहा है।”  तब भगवान् बुद्ध ने राहुल से कहा “राहुल ! क्या तुम चलित-ध्यान की अवस्था में नहीं रहते? अगर तुम चलित ध्यान का अभ्यास करोगे तो निश्चित हीं अपने मन की चंचलता पर नियंत्रण कर पाओगे।”

Photo Courtesy: Shutterstock
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तब राहुल ने भगवान् बुद्ध से कहा “भगवन मैं प्रति दिन बैठ कर ही ध्यान करता हूँ, ‘चलित-साधना’ अथवा ‘चलित-ध्यान’ का मुझे कोई ज्ञान नहीं है।” तब भगवान् बुद्ध ने राहुल से कहा “राहुल तुम अपने बढ़ते हुए हर एक पग के साथ अपनी एक एक श्वास को जोड़ दो। हर श्वास के साथ अपना एक पग आगे बढाओ, इन श्वासों की वृति में अपने मन को लगाए रखो। यह एक वृति अन्य वृतियों को तुम्हारे चित पर हावी नहीं होने देगी। यही ‘चलित-साधना’ अथवा ‘नित्य-ध्यान’ है। नित्य ध्यान की अवस्था में रहो! सर्वदा सचेत रहो! तभी तुम्हारा विवेक जागृत रहेगा, और अचेतन-मन की दमनकारी वृतियों से अपनी रक्षा कर पाओगे”

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नित्य कर्म परायण रहते हुए, एक निश्चित वृति से जुड़े रहना ही चलित-ध्यान अथवा नित्य-ध्यान की परिभाषा है। योगी निरंतर अपने मन में एक वृति को बनाए रखता है, जिससे कि अन्य वृतियां उसके ऊपर हावी न हो सके। वह चलते फिरते एवं हर कार्य करते हुए भी अपनी साधना करता रहता है। श्वासों के माध्यम से ध्यान करने वाले योग-साधक, अपना हर कार्य करते हुए अपना ध्यान अपने श्वासों पर टिकाए रहते हैं। फिर योगी निरंतर बैठ कर भी अपने धारणा एवं ध्यान का अभ्यास करते हैं। चलित साधना का अभ्यास करने से बैठ कर की गई ध्यान-साधना में शीघ्र हीं परिपक्वता आती है। इसका अभ्यास करने से चेतन-मन का विकास होता है। और साधक उच्च कोटि का  मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करता है।

भगवान् श्री कृष्ण भी पृथा-पुत्र अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं –

तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ||8.7||
(श्रीमद्भगवद्गीता)

अर्थात, हे अर्जुन! तुम निरंतर श्वास-श्वास में मेरा स्मरण करते हुए युद्ध भी करो। इस प्रकार तुम निरंतर सचेत अवस्था में रहते हुए इस धर्म-युद्ध में भी सफलता प्राप्त करोगे और निरंतर योग-ध्यान करते हुए मेरे परम धाम को भी प्राप्त करोगे, और यही जीवन की सफलता है |

(मनीष देव )

http://divyasrijansamaaj.blogspot.in/


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Courtesy: Yuttadhammo Bhikkhu

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