आत्म जगत या चेतना जगत कैसा होता है? क्या मृत्यु के बाद भी कुछ रहता है? – स्वामी गंगाराम जी
मृत्यु के बाद क्या होता है? ये एक ऐसा प्रश्न है, जो ज्यादातर लोगों के लिए एक अनसुलझी पहेली ही बना रहता है। अज्ञानतावश हमने इस जगत की कई कपोल कल्पनाओं या किस्से कहानियों को ही सत्य मान लिया है। हमारे उपनिषद सूक्ष्म जगत का विश्लेषण करते हैं।
वैज्ञानिक भी सदैव से सूक्ष्मतर विषयों पर से परदा उठाने की कोशिश करते रहे हैं। सूक्ष्मतम जगत का अंत निश्चित तौर पर एक ऐसी अवस्था पर होगा जहां कुछ भी शेष न रह जाए, लेकिन वहां तक भौतिक संसाधनों से पहुंच पाना शायद कभी संभव न हो पाए।
स्वामी गंगाराम आत्म जगत का विश्लेषण सूक्ष्म जगत के अनुसंधान से करते हैं। वे कहते हैं, जल की तीन अवस्थाएं हैं ठोस, द्रव्य और वाष्प। ठोस में जड़ता अधिक है, द्रव्य में उससे कम और वाष्प में उससे कम। जो जितना सूक्ष्म या कम जड़ता वाला है वो उतना शक्तिशाली है। पत्थर में जीवन शक्ति नहीं है, पानी में है और वाष्प में उससे भी ज्यादा। निश्चित तौर पर इस अवस्था से भी कई गहरी सूक्ष्मतम अवस्थाएं हैं जिन तक विज्ञान नहीं पहुंच सकता लेकिन हम पहुंच सकते हैं।
विज्ञान जब हिग्स बोसोन की खोज में पसीना बहा रहा है तब आप उससे भी सूक्ष्म विचार जगत का अनुसंधान अपने भीतर ही कर सकते हैं। ये विचार और इससे बने बुद्धि और मन से जीव की रचना होती है और यही जीव आत्म तत्व का आवरण बन जाता है। यदि वासनारहित जीवन से विचारों को शुद्ध नहीं किया जाता है और आत्म तत्व को जीव से मुक्त नहीं किया जाता है तो वो शरीर के बाद भी अपनी वासनाओं के साथ विचरण करता है और नई योनी की तलाश करता है। जैसी वासानाएं शेष रहती हैं वैसा ही शरीर दोबारा मिलता है।
यदि इच्छारहित होकर आत्म तत्व को परमात्व तत्व में विलीन होने दिया जाए तो कैवल्य, मोक्ष या ब्रह्म आदि शब्दों से निरुपित की गई अवस्था की प्राप्ति हो जाती है। जबतक देह में हैं तब तक तो ज्ञानी या सत्य को प्राप्त व्यक्ति भी भौतिक जगत में अपने भौतिक शरीर को लेकर दंड ही भोगता है। पहले जीव और फिर देह समाप्त होगी इसके बाद ही परमात्मा में विलय होगा। कबीर कहते हैं, देह धरे का दंड है, सब काहू को होय ज्ञानी भुगते ज्ञान से, मूरख भुगते रोय
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