फाग चहका और जोगीरा होली की परंपराओं में फाग गायन का सदियों से अपना स्थान रहा है। मगर समय के साथ-साथ अब होली भी पहले जैसी नहीं दिख रही है। अब होली गीत के नाम पर भोजपुरी गायकों के फूहड़ गीत या फिल्मी होली गीत ही हर जगह सुनने को मिल रहा है। होली के दौरान गाये जाने वाले पारंपरिक गीत, चहका व जोगीरा अब इतिहास बनता दिख रहा है।
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पहले बसंत पंचमी से होली का रंग लोगों के बीच नजर आने लगता था। बसंत पंचमी से होली गीत गाने वालों की टोली सजने लगती थी जो महाशिवरात्रि आते-आते अपने बुलंदियों पर पहुंच जाती थी। लेकिन अब होली की गायकी परंपराओं से हट कर नई धुनों व फिल्मी गीतों तक सिमट कर रह गयी है।
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क्या है फाग ,चहका और जोगीरा
होली का त्योहार शुरू होते ही पहले झाल, झांझ व मंजीरे पर चौपाल लगाकर गायकी होती थी और होली खेले रघुवीरा.., शिवशंकर खेले फाग.., ई मटिलगना बहिया मरोरलस कईसे के पीसू हरदिया.., कलकतवा की हो बाजार जानी के ले भागा आदि गायकी तक आता और अंत में लक्ष्य चाहे जिस वय की महिलाएं हो, भऊजी से संबोधित होती थीं। गायकों की टोली मोहल्ले की जिन गलियों से गुजरतीं, महिलाएं बाल्टी में रंग घोलकर उन पर उड़ेल देतीं। जिनके पास रंग नहीं था वह गोबर घोलकर या बाल्टी में पानी भरकर फेंकती थीं जिससे होली की टोली निहाल हो जाती थी। और सारा… रारा… कबीरा होली है का जोर से नारा लगाकर टोली प्रत्युत्तर देते आगे बढ़ जाती। इसी परंपरागत गायकी की बात तो उस समय होली का सबसे खास विधा ‘चहका’ का जिसे ढोल झाल पर गाते थे कि ‘होली खेले रघुवीरा अवध में’। इस परंपरागत चहका ने तो फिल्मों में भी अपना स्थान बना लिया।
इसके बाद फाग की बारी आती थी कि...’राम चले बनमाही, कोई समुझावत नाही’ आदि के बाद होरी की गायकी ‘यमुना तट श्याम खेले होरी यमुनातट’ की गायकी होती थी। फाग होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है। यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोक गीत है पर आस-पास के प्रदेशों में भी इसको गाया जाता है। फाग प्रमुख रूप से अवधी, ब्रज और भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में होता है। सामान्य रूप से फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता, राधाकृष्ण और सीताराम के प्रेम का वर्णन होता है। इन्हें शास्त्रीय संगीत और उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है। होली के त्यौहार में कई लोग फाग महोत्सव का आयोजन करते हैं जिसमे सभी एक दूसरे से मिलते हैं और होली के गीत गाते हैं।खासतौर पर छोटे शहरों में फाग के गीत गाये जाते हैं जिसमें एक मंडली होती है जो सभी के घर जाकर फाग के गीत गाती है। इस लोकगीत पर लोग नाचते हैं और ढोलक, मंजीरा बजाकर त्यौहार का आनंद लेते हैं। फाग के भी कई रूप होते हैं।
फाग और होरी के बाद धमार का नंबर आता था, धमार फाग गीत होता है, जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है । इसके बाद तो जो-गी-रा.. सबके तन मन में जोश भर देता था। वर्तमान में ये सब परंपराएं केवल स्मृति भर रह गई हैं। जिन पर आधुनिकता और भौतिकता का आवरण चढ़ चुका है। कहीं ऐसा न हो होली के यह लोकगीत कुछ दिनों में सिर्फ इतिहास बनकर रह जायें।
सुनिए होली का पहला जोगीरा फिल्मी गीत…
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