जन्म कुंडली क्या होती है ? कैसे देखी जाती है जन्मकुंडली ? जन्म कुंडली के सभी भाव, सभी गृह और जन्म कुंडली के अन्य योगायोग – कुंडली में भाव कैसे देखे
वर्तमान में जब इंसान अपने जीवन में तमाम परेशानियों का शिकार है और जीवन में सुख और शांति पाना चाहता है। दोस्तों! हमनें तरक्की तो बहुत कर ली परन्तु आज भी हर चीज हमारे नियंत्रण में नही है। हम मेहनत तो बहुत करते है परन्तु सबको एक जैसा फल नहीं मिलता, कोई बीमार है, कोई आर्थिक तंगी का शिकार है, किसी की शादी नही हो रही और किसी को नौकरी नही मिल रही तो कोई व्यापार में घाटा उठा रहा है, कोई पाप करता है और फिर भी मजे से जिन्दगी काटता है और कोई बहुत शुभ कर्म करता है तब भी कष्ट उठा रहा है, वैसे तो आजकल भाग्य और ज्योतिष को निरर्थक और अनपढ़ लोगो की विद्या समझ कर नकार दिया जाता है लेकिन जब हम अभी कही गयी बातों का लगातार शिकार होते है, तब हमे लगता है कि इस संसार में भाग्य नाम की एक चीज भी है। जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है। जन्म कुण्डली अलग – अलग स्थानों पर अलग-अलग तरह से बनती है। जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति।। भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय तथा पूर्वी भारत में बनी कुंडली भिन्न होती है।
जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है, जो मेष से मीन राशि तक होती हैं। बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है। एक भाव में एक राशि ही आती है। जन्म के समय भचक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आती है।
अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा में चलती है. माना पहले भाव में मिथुन राशि आती है तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी. अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि आती है।
इसी भाग्य पर बात करता है हमारा ज्योतिष।
मित्रों, तुलसीदास जी ने कहा है…
“कर्म प्रधान विश्व रची राखा”
मतलब कि ये संसार कर्म आधारित है। अर्थात अच्छे कर्म करोगे तो अच्छा फल और बुरे कर्म का फल बुरा होता है। हमारा भाग्य भी हमारे कर्मों से मिलकर बना है। पिछले जन्म के संस्कार हमारे इस जन्म के भाग्य बनाते है। तो आप समझे कि भाग्य क्या है। – कुंडली में भाव कैसे देखे
हमारे प्राचीन ऋषियों ने ज्योतिष का विकास इसलिए किया ताकि हम अपने भविष्य के बारे में जान सके और अपने समय का सदुपयोग कर अपने कर्मो को समय रहते सुधार कर सकें।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कई लोगों के मन में अवधारणा है कि ये तारे और नक्षत्र हमारे भाग्य का निर्धारण कैसे कर सकते है? मैं उन लोगों से सहमत हूँ कि हाँ तारे और नक्षत्र हमारे भाग्य का निर्धारण नहीं कर सकते है, क्यूंकि ये निर्धारक नहीं संकेतक हैं। आप सोचिये कि अगर आसमान में बदल दिख रहें है तो मैं कहूँगा कि बारिश होने वाली है, अगर गर्मी के मौसम में गरमी बहुत बढ़ जाती है तो हम लोग कह देते है कि आज आंधी आएगी। जब कहीं भूकंप आता है तो वहां के पशु पक्षियों में बहुत ही बेचैनी देखी जाती है। लेकिन जब हम ये सब बातें बोल रहे होते है तो हम अन्धविश्वासी नहीं होते हैं लेकिन अगर कोई व्यक्ति ज्योतिष के आधार पर कुछ कहता है तो फिर ये अन्धविश्वास कैसे? ये भी एक विज्ञान है जिसे हमारे ऋषि मुनियों ने संसार के कल्याण के लिए संसार को दिया।
ज्योतिष में हम लोग नक्षत्र और तारों की गति के आधार पर भविष्यवाणी करते हैं। हमे जो तारा मंडल पृथ्वी से लगातार दिखाई देते हैं हमने उनको अपना आधार मान लिया। इन तारा मंडलों को बारह राशियों में विभाजित कर लिया जो कि है.- कुंडली में भाव कैसे देखे
1. मेष – Aries
2. वृष – Tauras
3. मिथुन – Gemini
4. कर्क – Cancer
5 .सिंह – Leo
6. कन्या – Virgo
7. तुला – Libra
8. वृश्चिक – Scorpio
9. धनु – Sagittarius
10. मकर – Capricorn
11. कुम्भ – Aquarius
12. मीन – Pieces
इसके बाद हमने ग्रह देखे जो कि हमारे काफी पास है और इन सब राशियों पर भ्रमण करते प्रतीत होते हैं।
इनके नाम है….
सूर्य, चन्द्र, मंगल , बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि
दो छाया ग्रह- राहू और केतु
इन्ही ग्रहों के गति के आधार पर भविष्य कथन किया जाता हैं ।
कैसे देखे कुंडली?
हम अपनी कुंडली तो बनवा लेते है लेकिन उसके बारे में जानते नहीं है कम से कम आपको इतना तो मालूम ही होना चाहिए कि ये जो कुंडली है वो क्या है । ये जो चित्र देख रहे है आप ये एक व्यक्ति की कुंडली है जिनकी जन्म तिथि है 01 अगस्त 1985, जन्म समय है दोपहर के 2 बजे और जन्म स्थान है दिल्ली।
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आईये कुंडली के बारे में जानते है…
इसमें 12 खाने है और हर खाने में 1 संख्या लिखी हुई है। ये संख्या है वो दरअसल राशf की संख्या है जो की इस प्रकार है…
1. मेष
2. वृष
3. मिथुन
4. कर्क
5. सिंह
6. कन्या
7. तुला
8. वृश्चिक
9. धनु
10. मकर
11. कुम्भ
12. मीन
तो इस कुंडली में आप देखेंगे की सबसे ऊपर वाले खाने के स्थान पर संख्या 8 लिखी हुई है, देखिये जहाँ पर ल. लिखा है, ल. मतलब की लग्न, इसका मतलब की लग्न वाले स्थान पर 8 लिखा है और 8 नम्बर हम बता चुके है कि वृश्चिक राशी है। तो समझे आप व्यक्ति का लग्न हुआ वृश्चिक। इस लग्न से हम बाएं ओर को गिनना शुरू करे तो अगला खाना जिसमे कि 9 लिखा हुआ ये कुंडली का दूसरा भाव है इसी प्रकार जिसमे 10 लिखा है वो तीसरा भाव हुआ और जिसमे 11 लिखा है वो चौथा भाव हुआ और जिसमे 12 लिखा है वो पांचवा भाव हुआ और जिसमे 1 लिखा है वो छठा भाव हुआ। जिसमे 2 लिखा है वो खाना सातवाँ भाव हुआ और जिसमे 3 लिखा है वो खाना 8 भाव हुआ। जिसमे 4 लिखा है वो खाना नवां भाव हुआ और जिसमे 5 लिखा है वो दसवां भाव हुआ और जिसमे 6 लिखा है वो ग्यारहवां भाव हुआ और जिसमे 7 लिखा है वो बारहवां भाव हुआ।
एक बात और कुंडली में भाव तो निश्चित रहते है। इन भाव की गिनती इसी प्रकार होगी।
ज्योतिष से जीवन के रहस्य खोलने के लिए जन्म समय के अनुसार कुण्डली बनाना जरूरी होता है,अक्सर कुंडली बनाने के बाद उसके अन्दर भावो के अनुसार ग्रहों का विवेचन कैसे किया जाता है इस बात पर लोग अपने अपने ज्ञान के अनुसार कथन करते है,कई बार तो मैंने देखा है की कुंडली देखते ही कहना शुरू कर देते है की यह बात है इस बात का होना यह बात हुयी है लेकिन जो कुंडली को पूंछने के लिए आया है वह अपनी बात को कह ही नहीं पाया और तब तक दूसरे का नंबर आ गया,अपनी कुंडली को अपने आप जब तक पढ़ना नहीं आयेगा तब तक जीवन के भेद आप अपने लिए नहीं खोल पायेंगे,हर व्यक्ति के लिए तीन बाते जरूरी है की वह अपने समय को पहिचानना सीखे उसके बाद अपनी बात को दूसरे को समझना सीखे और तीसरी बात है की जब दुःख या कष्ट का समय है बीमारी है तो उसका अपने आप ही इलाज करना सीखे.समय को सीखना ज्योतिष कहलाता है और अपनी बात को समझाने की कला को मास्टर के रूप में जाना जाता है तीसरी बात जीवन के अन्दर आने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए वैद्य का होना भी जरूरी है,बाकी के काम जो जीवन में अपने लिए जरूरी है वे केवल कमाने खाने के लिए और लोगो के साथ रहने तथा आगे की संतति को चलाने से ही जुड़े होते है.ज्योतिष के अनुसार जब भेद खोले जा सकते है तो क्यों न भेद को खोल कर अपने हित के लिए देखा जाए और जो दिक्कत आने वाली है उसका निराकारण खुद के द्वारा ही कर लिया जाए तो कितना अच्छा होगा.आज कल कुंडली बनाने के लिए ख़ास मेहनत नहीं करनी पड़ती है कुंडली को बनाने के लिए बहुत से सोफ्ट वेयर आ गए उनके द्वारा अपनी जन्म तारीख और समय तथा स्थान के नाम से आप अपनी कुंडली को आसानी से बना सकते है.
उपरोक्त कुंडली में नंबर लिखे हुए और भावो के नाम लिखे है तथा ग्रहों के नाम लिखे हुए है.नंबर राशि से सम्बंधित है जैसे लगन जिस समय जातक का जन्म हुआ था उस समय तीन नंबर की राशि आसमान में स्थान ग्रहण किये हुए थी,एक नंबर पर मेष दूसरे नंबर की वृष तीसरे नंबर की मिथुन चौथे पर कर्क पांचवे पर सिंह छठे नंबर की कन्या सातवे नंबर की तुला आठवे की वृश्चिक नवे की धनु दसवे की मकर ग्यारहवे की कुम्भ और बारहवे नंबर की राशि मीन होती है.इसी प्रकार कसे लगन जो पहले नंबर का भाव होता है उसके अन्दर जो राशि स्थापित होती है वह लगन की राशि कहलाती है जैसे उपरोक्त कुंडली में तीन नंबर की मिथुन राशि स्थापित है.इससे बाएं तरफ देखते है चार नंबर लिखा है,इसी क्रम से भावो का रूप बना हुया होता है.पहले भाव को शरीर से दुसरे को धन से तीसरे को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों से चौथे नंबर को माता मन मकान और सुख से पांचवे को संतान शिक्षा और परिवार से छठे भाव को दुश्मनी कर्जा बीमारी से सातवे नंबर के भाव को जीवन साथी पति या पत्नी के लिए आठवे भाव को अपमान मृत्यु जान जोखिम नवे को भाग्य और धर्म न्याय विदेश दसवे को कर्म और धन के लिए किये जाने वाले प्रयास ग्यारहवे को लाभ और बड़े भाई बहिन दोस्त के लिए बारहवे को खर्च और आराम करने वाले स्थान के नाम से जाना जाता है.
क्या हैं ज्योतिष ?
ज्योतिष एक ऐसा महा विज्ञान है जो अपने आप में ही एक अदभुत रहस्य को अपने में समाये रखा है प्राचीनकाल से ही हमारे ऋषिमुनि ज्योतिष विधिया के द्वारा भुत ,भविष्य के बारे में आसानी से बता सकते थे ज्योतिष विधिया पूरी तरह से गृह नक्षत्रो पर आधारित एक गणितीय विधिया है जो ग्रहों की चाल तथा स्थति के द्वारा भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताया जा सकता है ज्योतिष 9 ग्रहों पर आधारित एक गणितीय विधि है ये 9 गृह अलग-अलग फल देते है तथा इस के आधार पर ही भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में जाना जा सकता है और व्यक्ति के जीवन पर इन ग्रहों का काफी प्रभाव परता है
ये गृह निम्न प्रकार के होते है
१ . सूर्य
२ . चन्द्र
३ . मंगल
४ . बुध
५ . बृहस्पति
६ . शुक्र
७ . शनि
८ . राहू
९ . केतु
१.सूर्य गृह :-
सूर्य गृह को आत्मा का कारक माना गया है सूर्य गृह सिंह राशि का स्वामी होता है सूर्य पिता का प्रतिनिधित्व भी करता है तांबा,घास,शेर,हिरन सोने के आभूषणआदि का भी कारक होता है सूर्य का निवास स्थान जंगल किला मंदिर एवं नदी है सूर्य सरीर में हर्दय आँख पेट और चहरे का प्रतिनिधित्व करता है और इस गृह से रक्तचाप गंजापन आँख सिर एवं बुखार संबंधित बीमारीयां होती है सूर्य क्षेत्रीय जाती का है इसका रंग केशरिया माना जाता है सूर्य एक पुरुष गृह है इसमें आयु की गरणा ५० साल की मानी जाती है सूर्य की दिशा पूर्व है जिस व्यक्ति के सूर्य उच्च का होने पर राजा का कारक होता है सूर्य गृह के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु को माना जाता है तथा इस गृह के शत्रु शुक्र और शनि है सूर्य गृह अपना असर गेंहू धी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर डालता है लम्बे पेड़ और पित रोग का कारण भी सूर्य गृह होता है सूर्य गृह के देवता महादेव शिव है गर्मी ऋतु सूर्य का मौसम है और इस गृह से शुरू होने वाला नाम ‘अ’ ‘ई’ ‘उ’ ‘ए’ अक्षरों से चालू होते है
२.चन्द्र गृह :-
चन्द्र गृह सोम के नाम से भी जाना जाता है इन्हें चन्द्र देवता भी कहते है उन्हें जवान सुंदर गौर और मनमोहक दिव्बाहू के रूप में वर्णित किया जाता है और इनके एक हाथ में कमल और दुसरे हाथ में मुगदर रहता है और इनके द्वारा रात में पुरे आकास में अपना रथ चलाते है उस रथ को कही सफ़ेद गोड़ो से खीचा जाता है चन्द्र गृह जनन क्षमता के देवताओ में से एक है चन्द्र गृह ओस से जुड़े हुए है उन्हें निषादिपति भी कहा जाता है
निशा = रात
निषादिपति = देवता
शुपारक (जो रात्री को आलोकित करे ) सोम के रूप में वे सोमवार के स्वामी है और मन माता की रानी का प्रतिनिधित्व करते है वे सत्व गुण वाले है
३.मंगल गृह :-
मंगल गृह लाल और युद्ध के देवता है और वे ब्रह्मचारी भी है मंगल गृह वृश्चिकऔर मेष रासी के स्वामी है मंगल गृह को संस्कृत में अंगारक भी कहा जाता है (‘जो लाल रंग का है ‘) मंगल गृह धरती का पुत्र है अर्थात मंगल गृह को पृथ्वी देवी की संतान माना जाता है मंगल गृह को लौ या लाल रंग में रंगा जाता है चतुर्भुज एक त्रिशूल मुगदर कमल और एक भाला लिए हुए चित्र किया जाता है उनका वाहन एक भेडा है वे मंगलवार के स्वामी है मंगल गृह की प्रकृति तमस गुण वाली है और वे ऊर्जावान कारवाई ,आत्मविश्वास और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते है
४.बुध गृह :-
बुध गृह व्यपार के देवता है और चन्द्रमा और तारा (तारक) का पुत्र है बुध गृह शांत सुवक्ता और हरे रंग में प्रस्तुत किया जाता है बुध गृह व्यपारियो के रक्षक और रजो गुण वाले है बुध बुधवार के मालिक है उनके एक हाथ में कृपाण और दुसरे हाथ में मुगदर और ढाल होती है बुध गृह रामगर मंदिर में एक पंख वाले शेर की सवारी करते है और शेरो वाले रथ की सवारी करते है बुध गृह सूर्य गृह के सबसे चहिता गृह है
५.बृहस्पति गृह :-
सभी ग्रहों में से बृहस्पति गृह सभी ग्रहों के गुरु है और शील और धर्म के अवतार है बृहस्पति गृह बलिदानों और प्रार्थनाओ के प्रस्तावक है जिन्हें देवताओ के पुरोहित के रूप में भी जाना जाता है ये गुरु शुक्राचार्य के कट्टर दुश्मन थे देवताओ में ये वाग्मिता के देवता, जिनके नाम कई कृतिया है जैसे की नास्तिक बाह्र्स्पत्य सूत्र .बृहस्पति गृह पीले तथा सुनहरे रंग के है और एक छड़ी एक कमल और अपनी माला धारण करते है वे बृहस्पति गृह के स्वामी है वे सत्व गुनी है और ज्ञान और शिक्षण का प्रितिनिधित्व करते है
६.शुक्र गृह :-
शुक्र गृह दैत्यों के शिक्षक और असुरो के गुरु है जिन्हें शुक्र गृह के साथ पहचाना जाता है शुक्र ,शुक्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है शुक्र गृह साफ़, शुध्द या चमक,स्पष्टता के लिए जाना जाता है और उनके बेटे का नाम भ्रुगु और उशान है वे शुक्रवार के स्वामी है प्रकृति से वे राजसी है और धन ख़ुशी और प्रजनन का प्रतिनिधित्व करते है शुक्र गृह सफ़ेद रंग मध्यम आयु वर्ग और भले चेहरे के है शुक्र गृह घोड़े पर या मगरमच्छ पर वे एक छड़ी ,माला और एक कमल धारण करते है शुक्र की दशा की व्यक्ति के जीवान में २० वर्षो तक सक्रीय बनी रहती है ये दशा व्यक्ति के जीवन में अधिक धन ,भाग्य और ऐशो-आराम देती है अगर उस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र मजबूत स्थान पर विराजमान हो और साथ ही साथ शुक्र उसकी कुंडली में एक महत्वपूर्ण फलदायक गृह के रूप में हो शुक्र गृह वैभव का भी कारक होता है
७.शनि गृह :-
शनि गृह तमस प्रकृति का होता है शनि , शनिवार का स्वामी है शनी सामान्यतया कठिन मार्गीय शिक्षण ,कैरियर और दीर्घायु को दर्शाता है शनि शब्द की व्युत्पति शनये क्रमति स: अर्थात, वह जो धीरे-धीरे चलता है शनि को सूर्य की परिक्रमा में ३० वर्ष लगते है शनि सूर्य के पुत्र है और जब उन्होंने एक शिशु के रूप में पहली बार अपनी आँखे खोली , तो सूरज ग्रहण में चला गया,जिसमे ज्योतिष कुंडली पर शनि के प्रभाव का साफ संकेत मिलता है शनि वास्तव में एक अर्ध देवता है शनि का चित्रण काले रंग में ,काले लिबास में ,एक तलवार ,तीर और कौए पर सवार होते है
८.राहू गृह :-
राहू गृह राक्षसी सांप का मुखिया है राहू उत्तर चन्द्र /आरोही आसंधि के देवता है राहू ने समुन्द्र मंथन के दौरन असुर राहू ने थोडा दिव्य अमृत पी लिया था अमृत उनके गले से नीचे उतरने से पहले मोहिनी (विष्णु भागवान) ने उसका गला काट दिया तथा इसके उपरांत उनका सिर अमर बना रहा उसे राहू काहा जाता है राहू काल को अशुभ माना जाता है यह अमर सिर कभी-कभी सूरज और चाँद को निगल जाता है जिससे ग्रहण लगता है
९.केतु :-
केतु गृह का मानव जीवन पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता है वे केतु अवरोही/दक्षिण चन्द्र आसंधि का देवता है केतु को एक छाया गृह के रूप में माना जाता है केतु राक्षस सांप की पूँछ के रूप में माना जाता है केतु चन्द्रमा और सूरज को निगलता है केतु और राहू ,आकाशीय परिधि में चलने वाले चन्द्रमा और सूर्य के मार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरुपित करते है इसलिए राहू और केतु को उत्तर और दक्षिण चन्द्र आसंधि कहा जाता है सूर्य को ग्रहण तब लगता है जब सूर्य और चंद्रमा इनमे से एक बिंदु पर होते है ये किसी विशेष परिस्थितियों में यह किसी को प्रसिध्दि के शिखर पर पंहुचने में मदद करता है वह प्रकृति में तमस है और परलौकिक प्रभावों का प्रतिनिधित्व करता है
कुंडली के बारह भाव और उनसे क्या जानें
ऊपर आपको कुंडली के भाव कैसे देखें ये बताया था अब ये जानेंगे की प्रत्येक भाव क्या बताता है और हमें किस विषय के बारे में जानना हो तो उस विषय को उस भाव से देखें।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की उदाहरण के लिए अगर हमे जानना हो कि किसी व्यक्ति के विवाह के बारे में विचार करना हो तो उसकी कुंडली का सप्तम भाव देखेंगे। इसी प्रकार करिअर के लिए दसवां भाव देखेंगे। भाव का परिचय :-
जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता ह
सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है.
बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है.
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प्रथम भाव – First House
तनु भाव प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक संरचना का विचार किया जाता है. पूरे शरीर की बनावट इस भाव से देखी जाती है. शरीर का रंग, रुप, बाल, सहनशक्ति, ज्ञान, स्वभाव जीवन के सुख-दुख, स्वास्थ्य, शरीर का बलाबल, मानसिक प्रवृ्त्ति को बताता है.
द्वितीय भाव – Second House
धन भाव इस भाव से व्यक्ति की वाणी, कुटुम्ब,धन आदि का विचार किया जाता है. इस भाव से दांई आँख का भी विचार किया जाता है. विद्या,चेहरा,खान-पान की आदतें आदि भी इसी भाव से देखी जाती हैं. सच और झूठ, जीभ, मृ्दु वचन, मित्रता, शक्ति, आय की विधि आदि बातों का विचार भी इस भाव से किया जाता है. यह भाव मारक भाव भी है. इस भाव से मृ्त्यु के बारे में भी पता चलता है. कुण्डली का प्रथम मारक स्थान है.
तृ्तीय भाव – Third House
सहज भाव इस भाव से छोटे भाई-बहन, धैर्य,पराक्रम,व्यक्ति का पुरुषार्थ, छोटी यात्राएँ,दाहिना कान और दाहिना हाथ, शक्ति,वीरता,बन्धु,मित्रता,नौकर, दास-दासी. यह मजबूत इच्छा शक्ति का भी भाव है. महर्षि पराशर के अनुसार तृ्तीय भाव उपदेश या धार्मिक उपदेश का भी होता है. दूसरों को ताप पहुंचाना भी इस भाव का कारकत्व है.
चतुर्थ भाव – Fourth House
सुख भाव यह भाव भवनों का प्रतीक है. घर, घर से निकालना, वाहन,माता,घर का सुख,झूठा आरोप, मकान, खेतीबाड़ी, वाहन, आदि इस भाव से देखा जाता है. भौतिक सुखों की प्राप्ति, अनुभूति, माता से वात्सल्य का सुख, माता के पूरे भविष्य का पता इस भाव से चलता है. ऎशों – आराम के सभी साधन, पद मिलेगा या नहीं इस भाव से देखते हैं. जीवन के प्रति नकारात्मक और सकारात्मक दृ्ष्टिकोण यहीं से पता चलता है. सामान्य शिक्षा, मन के भाव, मस्तिष्क, भावुकता आदि इस भाव से देखा जाता है. इस भाव से छाती और फेफड़ों को देखते हैं.
पंचम भाव – Fifth House
पुत्र भाव [संतान भाव] यह संतान प्राप्ति का भाव है. शिक्षा का भाव है. शिक्षा का स्तर कैसा होगा, इस भाव से पता चलेगा. विवेक का भाव, पूर्व जन्म के संचित कर्म, पंचम भाव से प्रेम संबंध, लेखन कार्य भी पंचम भाव से देखते हैं. पंचम भाव से राज शासन, मंत्रीत्व, शास्त्रों का ज्ञान, लॉटरी, पेट, स्मृ्ति आदि का विचार किया जाता है. इस भाव से ह्रदय, पेट का ऊपरी भाग का विचार करते हैं.
षष्ठ भाव – Sixth House
अरि भाव [शत्रु भाव] इस भाव से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हर प्रकार के शत्रुओं का विचार किया जाता है. शारीरिक और मानसिक शत्रु [काम, क्रोध, मद, लोभ] अहंकार, सेवा क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा [competition in service] रोग की प्रारम्भिक अवस्था, ऋण, जैसे जीवन यापन और व्यापार आदि के लिये ऋण आदि लेना इसी भाव से. छठा भाव सर्विस भाव भी है. चिकित्सकों की कुण्डली में यह भाव बली होता है. वकीलों का व्यवसाय भी यहीं से देखा जाता है. सौतेली मां, झगडा़ – मुकदमा, पानी से भय, जानवर से भय, मामा – मौसी को भी इस भाव से विचारते हैं. इस भाव से गुर्दे, पेट की आँतें तथा हर तरह के व्यसनों का विचार किया जाता है.
सप्तम भाव – Seventh House
दारा या कलत्र भाव इस भाव से जीवन साथी का विचार करते हैं. उसका रुप-रंग, शिक्षा, व्यवहार सभी का विचार इस भाव से किया जाता है. दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा या उसमें कलह होगा, सभी का विचार इस भाव से होता है. यह साझेदारी का भाव है. आधुनिक समय में इस भाव से व्यापार तथा व्यापार में साझेदारी की गुणवत्ता का विचार करते हैं. इस भाव से जीवन के हर क्षेत्र की साझेदारी को देखा जाता है. प्रजातंत्र में यह जनता का भाव भी है. नेताओं की कुण्डली में यदि यह भाव बली है तो वह नेता जनता में लोकप्रिय होगा. इस भाव से मध्यम स्तर की यात्राएं देखते हैं इस भाव से travels for fun and travels for business भी देखते हैं. यह कुण्डली का दूसरा मारक स्थान है.
अष्टम भाव – Eighth House
इस भाव से पैतृ्क सम्पति, विरासत, अचानक आर्थिक लाभ, वसीयत आदि अष्टम भाव के सकारात्मक पक्ष है. लम्बी बीमारी, मृ्त्यु का कारण, यौन संबंध, दाम्पत्य जीवन, अष्टम भाव का नकारात्मक पक्ष है. इस भाव से जननेन्द्रियों का विचार करते हैं.
नवम भाव – Ninth House
भाग्य भाव नवम भाव से आचार्य, गुरुजन, पिता और अपने से बडे़ सम्मानित लोगों का विचार किया जाता है. यह भाव भाग्य भाव भी कहलाता है. इस भाव से लम्बी समुद्र यात्रा, तीर्थ यात्राएं, भाई की स्त्री, जीजा, अपने बच्चों की संतान का विचार भी इस भाव से होता है. आध्यात्मिक प्रवृ्तियाँ, भक्ति या धर्म अनुराग, सीखना या ज्ञान प्राप्त करना, धार्मिक और न्याय से संबंधित व्यक्तियों के बारे में इस भाव से विचार करते हैं. एक अच्छा नवम भाव कुण्डली को बहुत बली बनाता है. नवम भाव से जाँघें देखते हैं.
दशम भाव – Tenth House
कर्म स्थान यह कर्म का क्षेत्र है. रोजगार के लिये जो कर्म करते है वो दशम भाव से देखे जाते हैं. किस आयु में कर्म की प्राप्ति होगी, कर्म का क्षेत्र क्या होगा, किस तरह से समय का सदुपयोग या दुरुपयोग करते हैं. रोजगार कैसा और कब शुरु होगा, रोजगार में टिकाव रहेगा या नहीं, रोजगार में कितना मान मिलेगा , स्वयं का मान-सम्मान आदि बातों का विचार इस भाव से किया जाता है. प्रसिद्धि, सम्मान, आदर, प्रतिष्ठा तथा व्यक्ति की उपलब्धियाँ दशम भाव से देखी जाती है. दशम भाव से घुटनों का विचार किया जाता है.
एकादश भाव – Eleventh House
आय या लाभ भाव इस भाव से आय, लाभ, पद प्राप्ति, प्रशंसा, बडे़ भाई – बहन, पुत्र वधु, बांया कान और बांहें देखते हैं. व्यापार से लाभ – हानि और सभी प्रकार के लाभ इस भाव से देखे जाते हैं. जो कर्म जातक ने किये हैं उनका श्रेय इस भाव से मिलता है. इस भाव से पिण्डलियाँ और टखने का विचार करते हैं.
द्वादश भाव – Twelfth House
व्यय भाव जिंदगी का अंतिम पडा़व, हर तरह के व्यय, हानि, बरबादी, जेल, अस्पताल, षडयंत्र आदि इस भाव से देखे जाते हैं. खुफिया पुलिस, दरिद्रता, पाप, नुकसान, शत्रुता, कैद, शयन सुख, बायां नेत्र, गुप्त शत्रु, निंदक आदि का विचार इस भाव से किया जाता है. आधुनिक सन्दर्भ में विदेश यात्रा, विदेश में व्यवसाय, विदेशों में रहना आदि का विचार इस भाव से किया जाता है. इस भाव से पैर और पैर की अंगुलियों का विचार करते हैं. जो लोग आध्यात्म से जुडे़ हैं उनकी कुण्डली में द्वादश भाव का बहुत महत्व होता है. आध्यात्मिक जीवन के संकेत और मोक्ष के विषय में द्वादश भाव से विचार करते हैं
प्रिय पाठकों, अभी ऊपर हमने देखा कि प्रत्येक भाव का क्या काम है अब हम ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री से जानते हैं की कि प्रत्येक राशि का स्वामी कौन ग्रह होता है। ग्रहो की स्थिति :-
जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने़. ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है.
पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें. फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है. जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें.
जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें. जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग हैं.
१२ राशियों के नाम एवम उनके स्वामी की जानकारी निम्न है…
मेष का स्वामी = मंगल ,
वृष का स्वामी = शुक्र ,
मिथुन का स्वामी = बुध ,
कर्क का स्वामी = चन्द्रमा ,
सिंह का स्वामी = सूर्य ,
कन्या का स्वामी -= बुध ,
तुला राशी का स्वामी = शुक्र,
वृश्चिक का स्वामी = मंगल ,
धनु का स्वामी = गुरु ,
मकर का स्वामी = शनि ,
कुम्भ का स्वामी = शनि ,
मीन का स्वामी = गुरु |
कुंडली का फलकथन :-
फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है.
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है. जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी.
तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी. यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
जानिए कैसे करें दशा का अध्ययन :-
अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ् नहीं मिलता है. आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है.
जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भाव रखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें.
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें. महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखें.
कैसे करें गोचर का अध्ययन :-
सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें. दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है. कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं.
किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है.
जानिए कैसे बनाएं कुंडली :-
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुंडली बनाने का कार्य मुख्य रूप से पंडित या ब्राह्ममण करते हैं लेकिन आज इंटरनेट ने अपना विस्तार इस तरह किया है कि ज्योतिष की इस अहम शाखा में भी उसकी पहुंच हो गई है।
कुंडली और ग्रह दशा :-
आकाश मण्डल में बहुत से ग्रह हैं मगर ज्योतिष शास्त्र में सात ग्रह व दो छाया ग्रहों का ही उल्लेख मिलता है और यही ग्रह हमारे जीवन को जन्म लग्न की स्थितिनुसार फल देते हैं। मान्यता है कि किसी भी जातक का जीवन नव ग्रहों के शुभ और अशुभ फलों के प्रभाव पर ही निर्भर करता है। कुंडली में नव ग्रहों की स्थिति के अनुरूप ही मानव जीवन में आने वाले सुख-दुख, खुशी-गम, सफलता-असफलता देते हैं। क्या वास्तव में सभी ग्रह हमारी राशि के अनुसार फल प्रदान करते हैं?
इस संसार में हरेक वस्तु चाहे वह ग्रह हो, पेड़-पौधे हो, मानव हो, खनिज तत्व हो। सब अपनी-अपनी तरंगों से एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं। हम निश्चय रूप से केवल नवग्रहों से ही नहीं संपूर्ण तारामंडल से प्रभावित होते हैं नवग्रह तो ब्रह्मांड का कुछ प्रतिशत हिस्सा भी नहीं है। तो क्या ये सब हमारे भविष्य को प्रभावित करते हैं, र्निमित करते हैं ?
अगर आपकी शारीरिक-मानसिक क्षमताएं अपनी गलत धारणाओं और आहार-विहार से कमजोर हो गई है तो आप निश्चय ही इससे प्रभावित होते हैं। क्या ग्रहों के प्रभाव से बच सकते हैं ?
हम सभी जानते हैं कि जब हम कमजोर होते हैं तो गर्मी, सर्दी, बरसात, कोलाहल हल्की आवाजें भी हमसे सहन नहीं होती। जब हम मजबूत होते हैं तो इन सब को लंबे समय तक झेल सकते हैं। अगर आप प्राकृतिक आहार-विहार, योग-ध्यान, रेकी, तनाव रहित जीवन से या सकारात्मक धारणाओं से अपने आपको सशक्त रखते हैं तो ग्रहों के कोई भी प्रभाव आपको विचलित नहीं करते आपको पता भी नहीं चलता कि कौन-सा ग्रह कब आया और कब गया, कौन सा मौसम कब आया कब गया, क्योंकि आपके अपने शरीर मन में कोई परिवर्तन नहीं आता।
फलादेश कैसे करते है :-
जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो – शुभ फलदायक होगा।
इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।
जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।
त्रिकोण के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।
क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।
दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।
शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।
बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।
सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।
सूर्य के उपाय
आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे 3 बार सूर्य के सामने
ॐ घृणी सूर्याय नमः का कम से कम 108 बार जप कर ले
गायत्री का जप कर ले
घर की पूर्व दिशा से रौशनी आयेगी तो अच्छा रहेगा ।
घर में तुलसी का पौधा जरूर लगा दे
पिता की सेवा
शराब और मांसाहार न खिलाये
शिवजी ,पीपल के उपाय।
ज्योतिषि को अपनी कुंडली दिखाइए।
कुंडली से जाने प्रेम विवाह कब होगा :-
वैलेंटाइन डे को आज का युवा वर्ग प्रेम के इजहार के पर्व के रूप में मनाने लगा है। कुछ प्रेम के इजहार को विवाह में भी बदल लेते हैं। आपके भावी जीवन साथी की जन्म कुंडली में यदि आपके अनुकूल स्थितियां हों तो प्रेम विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन पूर्ण सुखी व सफल रहता है और भाग्योन्नति होती है।
जन्म कुंडली का पंचम भाव प्रणय संबंध और सप्तम भाव विवाह से संबंधित होता है। शुक्र सप्तम भाव का कारक है। अत: जब पंचमेश, सप्तमेश और शुक्र का शुभ संयोग होता है तो दोनों में घनिष्ठ स्नेह होता है।
दोनों की राशियां एक दूसरे से समसप्तक हों या एक से अधिक ग्रह समसप्तक हों जैसे एक का चंद्रमा लग्न में तथा दूसरे का सप्तम भाव में हो।
दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों अर्थात एक की कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्न, पंचम, नवम या केंद्र में हों तथा दूसरे के भी इन्हीं भावों में हों।
दोनों के लग्नेश और राशि स्वामी एक ही ग्रह हों। जैसे एक की राशि मीन हो और दूसरे की जन्म लग्न मीन होने पर दोनों का राशि स्वामी गुरु होगा।
दोनों के लग्नेश, राशि स्वामी या सप्तमेश समान भाव में या एक दूसरे के सम-सप्तक होने पर रिश्तों में प्रगाढ़ता प्रदान करेंगे।
दोनों की कुंडलियों के ग्रहों में समान दृष्टि संबंध हो। जैसे एक के गुरु चंद्र में दृष्टि संबंध हो तो दूसरे की कुंडली में भी यही ग्रह दृष्टि संबंध बनाएं।
सप्तम एवं नवम भाव में राशि परिवर्तन हो तो शादी के बाद भाग्योदय होता है। सप्तमेश ग्यारहवें या द्वितीय भाव में स्थित हो तथा नवमांश कुंडली में भी सप्तमेश 2, 5 या 11वें भाव में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी से आर्थिक लाभ होता है।
उपरोक्त ग्रह स्थितियों में से जितनी अधिक ग्रह स्थितियां दोनों की कुंडलियों में पाई जाएंगी, उनमें उतना ही अधिक सामंजस्य होकर गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा।
इसी प्रकार कुछ विषम ग्रह स्थितियां दाम्पत्य जीवन को दुखदायी बना सकती हैं। अत: ऐसी ग्रह स्थितियों में दोनों की कुंडलियों का मिलान कराने के बाद ही विवाह करें।
शनि, सूर्य, राहु, 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश) तथा राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी (जैसे राहु मीन राशि में हो तो, मीन का स्वामी गुरु राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी होगा) यह पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं। इनमें से किन्हीं दो या अधिक ग्रहों का युति अथवा दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव/भाव स्वामी से होता है तो उसे नुकसान पहुंचाते हैं। सप्तम भाव व उसके स्वामी को इन ग्रहों से प्रभावित करने पर दाम्पत्य में कटुता आती है। सप्तमेश जन्म लग्न से 6, 8, 12वें भाव में हो अथवा सप्तम भाव से 2, 6 या 12वें भाव में हो अथवा नीच, शत्रुक्षेत्रीय या अस्त हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा।
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कुंडली और ग्रह दोष :-
बजरंगबली की आराधना से आप खुशियों का वरदान पा सकते हैं। मंगलवार को बजरंगबली की पूजा के लिए बेहद उत्तम माना गया है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो बजरंगबली की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं।
धन का संचय न हो पा रहा हो अथवा घर में बरकत न हो पा रही हो तो लाल चंदन, लाल गुलाब के फूलों एवं रोली को लाल कपड़े में बांध कर एक सप्ताह के लिए घर पर बने बजरंगबली के मंदिर में रख दें। एक सप्ताह पश्चात उस कपड़े को घर की तथा दुकान की तिजोरी में रख दें।
हनुमान चालिसा का पाठ करने से मन को शांति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव दूर होता है।
ज्योतिष के मतानुसार बजरंगबली के भक्तों को शनि की साढ़सती और ढैय्या में अशुभ प्रभाव नहीं झेलने पड़ते। बजरंगबली का नाम सिमरण करने मात्र से आप जीवन में आ रही तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।
बजरंगबली को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पण करने से वह बहुत प्रसन्न होते हैं और शीघ्र ही अपने भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।
मंगलवार के दिन पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ कर उन्हें शुद्ध जल से साफ करें। कुमकुम, अष्टगंध और चंदन मिलाएं। किसी बारीक तीले से श्री राम का नाम उन पत्तों पर लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद श्रीराम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं और बजरंगबली के मंदिर में जाकर बजरंगबली को पहनाएं। ऐसा करने से जीवन में आने वाली समस्त समस्याओं का समाधान होगा।
जन्म कुंडली में बृहस्पति खराब हो :-
महिलाओं का जीवन उनके पति बच्चों और घर -गृहस्थी में सिमटा होता है। जन्म कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो वह महिला को स्वार्थी, लोभी और क्रूर विचार धारा की बना देता है। दाम्पत्य जीवन में दुखों का समावेश होता है और संतान की ओर से भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पेट और आंतों के रोग हो जाते हैं। अगर जन्म- कुंडली में बृहस्पति शुभ प्रभाव दे तो महिला धार्मिक, न्याय प्रिय, ज्ञानवान, पति प्रिया और उत्तम संतान वाली होती है। ऐसी महिलाएं विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है।
कुछ कुंडलियों में बृहस्पति शुभ होने पर भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने समक्ष सभी को तुच्छ समझती है क्योंकि बृहस्पति के शुभ होने पर उसमें ज्ञान की सीमा नहीं रहती। वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने लगती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्योंकि उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है
यही अहंकार उस में मोटापे का कारण भी बन जाता है। वैसे तो अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मोटापा आता है मगर बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से मोटापा अलग ही पहचान में आता है यह शरीर में थुल थूला पन अधिक लाता है क्योंकि की बृहस्पति शरीर में मेद कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है।
कमजोर बृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है मगर किसी ज्योतिष की राय ले कर। गुरुवार का व्रत करें, सोने का धारण करें,पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले भोजन का ही सेवन करें। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी बृहस्पति अनुकूल होता है।
उग्र बृहस्पति को शांत करने के लिए बृहस्पति वार का व्रत करना, पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए। केले के वृक्ष की पूजा करें और विष्णु भगवान् को केले का भोग लगाएं और छोटे बच्चों, मंदिरों में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।
अगर दाम्पत्य जीवन कष्टमय हो तो हर बृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देसी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाएं। कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही बृहस्पति को चपाती पर गुड की डली रख कर गाय को खिलानी चाहिए और सबसे बड़ी बात यह के झूठ से जितना परहेज किया जाय, बुजुर्गों और अपने गुरु,शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही बृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।
विभिन्न लग्नों के लिए राजयोग ग्रह :-
कुछ ग्रह लग्न कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ योग बनाते हैं जो व्यक्ति को धन, यश, मान, प्रतिष्ठा सारे सुख देते हैं।
विभिन्न लग्नों के लिए राजयोगकारी ग्रह निम्न हैं।
1. मेष लग्न के लिए गुरु राजयोग कारक होता है।
2. वृषभ और तुला लग्न के लिए शनि राजयोग कारक होता है।
3. कर्क लग्न और सिंह लग्न के लिए मंगल राजयोग कारक होता है।
4. मिथुन लग्न के लिए शुक्र अच्छा फल देता है।
5. वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा अच्छा फल देता है।
6. धनु लग्न के लिए मंगल राजयोग कारक है।
7. मीन लग्न के लिए चंद्रमा व मंगल शुभ फल देते हैं।
8. मकर लग्न के लिए शुक्र योगकारक होता है। तो कुंभ लग्न के लिए शुक्र और बुध अच्छा फल देते हैं। कन्या लग्न के लिए शुक्र नवमेश होकर अच्छा फल देता है।
जो ग्रह एक साथ केंद्र व त्रिकोण के अधिपति होते हैं, वे राजयोगकारी होते हैं। ऐसा न होने पर पंचम व नवम के स्वामित्वों की गणना की जाती है।
यदि कुंडली में ये ग्रह अशुभ स्थानों में हो, नीच के हो, पाप प्रभाव में हो तो उनके लिए उचित उपाय करना चाहिए।
ग्रहों का फल देने का समय :-
ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में तो अपना फल देते ही हैं बल्कि कुछ और भी जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब ग्रह अपना पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर डालते हैं | जितना कुछ मेरे मस्तिष्क में है वह सब तो मैं व्यक्त नहीं कर सकता परन्तु आवश्यक नियम इस प्रकार हैं |जब आप बीमार होते हैं उस समय सूर्य का प्रभाव आपपर होता है | सूर्य यदि अच्छा हो तो बीमारी की अवस्था में भी आपका मनोबल बना रहता है इसके विपरीत यदि सूर्य अच्छा न हो तो जरा सा स्वास्थ्य खराब होने के बाद आपको जीवन से निराशा होने लगती है | इस समय सूर्य का पूर्ण प्रभाव आप पर होता है |
घर में किसी बच्चे के जन्म के समय हम चंद्रमा के प्रभाव में होते हैं | जीवन में संवेदनशील लम्हों में चन्द्र का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है | इसके अतिरिक्त जब हम अपने हुनर या कला का प्रदर्शन करते हैं तब चन्द्र हमारे साथ होते हैं |
चोट लगने पर, सर्जरी या आपरेशन के समय, संघर्ष करते समय और मेहनत करते वक्त मंगल हमारे साथ होता है | उस वक्त किसी अन्य ग्रह की अपेक्षा मंगल का असर सर्वाधिक आप पर रहता है | हाथ की मंगल रेखा या मंगल के फल देने का काल यही होता है |
जब बोलकर किसी को प्रभावित करने का समय आता है तब बुध का समय होता है | जब आप चालाकी से अपना काम निकालते हैं तो बुध का बलाबल आपकी सहायता करता है |
जब हम शिक्षा ग्रहण करते है या फिर जब हम शिक्षा देते हैं उस समय गुरु का प्रभाव हमारे जीवन पर होता है | किसी को आशीर्वाद देते समय या किसी को बददुआ देने के समय बृहस्पति ग्रह की कृपा हम पर होती है | इसके अतिरिक्त पुत्र के जन्म के समय या पुत्र के वियोग के समय भी बृहस्पति का पूरा प्रभाव हमारे जीवन पर होता है |
मनोरंजन के समय शुक्र का प्रभाव होता है | विवाह, वर्षगांठ, मांगलिक उत्सव और सम्भोग के समय शुक्र के फल को हम भोग रहे होते हैं | आनन्द का समय हो या नृत्य का, हर समय शुक्र हमारे साथ होते हैं | यही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसके निर्बल होने पर जीवन एक बोझ के समान लगता है | जीवन से आनन्द ख़त्म हो जाए या जीना मात्र एक मजबूरी बन कर रह जाए तो समझ ले कि शुक्र का बुरा प्रभाव आप पर है |
शनि का अर्थ ही दुःख है | जिस समय हम दुःख की अवस्था में होते हैं तब शनि का समय समझे | इस काल को छोड़कर सभी काल क्षण भंगुर होते हैं | शनि के काल की अवधि लम्बी होती है | दुःख या शोक के समय, सेवा करते वक्त, कारावास में या जेल में और बुढापे में शनि का प्रभाव सर्वाधिक होता है |
कुंडली में एक प्रकार के ग्रहण दोष :-
ग्रहण दोष दो प्रकार के होते है सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण ! सूर्य ग्रहण का उपाय उस समय किया जाता है जब सूर्य ग्रहण का मध्य काल हो और चन्द्र ग्रहण का उपाय चन्द्र ग्रहण में किया जाता है ! यहाँ मै सूर्य ग्रहण का उपाय बता रहा हूँ जो आप सूर्य ग्रहण के मध्य काल में कर सकते है ! इस उपाय से राहू चन्द्र के घर में चला जाता है और शांत हो जाता है और पिता के सुख और मान सम्मान में वृद्धि करता है ! सरकार की तरफ से लाभ मिलता है और सूर्य का शुभ फल प्राप्त होता है !
यदि लग्न में राहू हो या लग्न में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 100 ग्राम बादाम गिरी और एक सुखा नारीयलबहते पानी में बहाए !
यदि दुसरे भाव में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 200 ग्राम बादाम और दो सूखे नारीयल बहते पानी में बहाए !
यदि तीसरे भाव में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 300 ग्राम बादाम गिरी और तीन सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि चौथे भाव में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 400 ग्राम बादाम गिरी और चार सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि पांचवे घर में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 500 ग्राम बादाम गिरी और पांच सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि छटे भाव में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 600 ग्राम बादाम गिरी और ६ सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि सातवे भाव में सूर्य और राहू एक साथ बैठे हो तो 700 ग्राम बादाम गिरी और ७ सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि आठवे भाव में राहू और सूर्य एक साथ बैठे हो तो 800 ग्राम बादाम गिरी और ८ सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि नौवे भाव में सूर्य और राहू एक साथ हो तो 900 ग्राम बादाम गिरी और ९ सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि दशवे घर में सूर्य और राहू एक साथ हो तो 1 किलो बादाम गिरी और १० सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
यदि एकादश भाव में सूर्य और राहू एक साथ हो तो 1100 ग्राम बादाम गिरी और ११ सूखे नारियल बहते पानी में बहाए !
११. बुध देवता की कृपा से पाएं धन-वैभव :-
बुध ग्रह को ग्रहों में राजकुमार की उपाधि दी गई है। बुध ग्रह को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। इसीलिए धन, वैभव आदि का संबंध बुध से है। बुध की दिशा उत्तर है तथा उत्तर दिशा कुबेर का स्थान भी है। बुध से जु़डा सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण धर्म है। अनुकूलनशीलता हर हाल में खुद को ढाल लेना सिर्फ बुध प्रधान व्यक्ति ही कर सकता है। बुध को कई महत्वपूर्ण तथ्यों का कारक ग्रह माना गया है जैसे – वाणी का कारक, बुद्धि का कारक, त्वचा का कारक, मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र का कारक आदि।
जन्म या वर्ष कुंडली में बुध ग्रह अशुभफलदायी हो तो भगवान विष्णु का ध्यान करके शुक्ल पक्ष के बुधवार को आरंभ करके 9000 की संख्या में बीज मंत्र का जप करना चाहिए। बुध के तांत्रोक्त मंत्र हैं
ऊँ ऎं स्त्रीं श्रीं बुधाय नम:
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
ऊँ स्त्रीं स्त्रीं बुधाय नम:
दान योग्य वस्तुएं मूंगी, 5 हरे फल, चीनी, हरे पुष्प, हरी इलायची, कांस्य पत्र, पन्ना सोना, हाथी का दांत, हरी सब्जी, हरा कपड़ा, दक्षिणा सहित दान करें।
उपाय कुंडली में बुध शुभ होते हुए भी फलकारक न हो तो निम्न उपाय शुभ होंगे-
1 हरे रंग का पन्ना बुधवार को सोने की अंगुठी में धारण करें।
2 हरे रंग के वस्त्र पहनें परंतु यदि बुध अशुभ हो तो हरे वस्त्र कदापि न पहनें।
3 बुधवार को चांदी या कांस्य के गोल टुकड़े को हरे रंग के कपड़े में लपेट कर जेब में रखें या भुजाओं के साथ बांधें।
यदि बुध अशुभ हो तो
1 मूंगीसाबत के सात दानें, हरा पत्थर, कांसे का गोल चुकड़ा, हरे वस्त्र में लपेट कर बुधवार को चलते पानी में बहाना शुभ होगा। पानी में बहाते समय कम से कम सात बार बीज मंत्र पढ़ें।
2 हरे रंग के वस्त्र किसी हिजड़े को बुधवार के दिन देना शुभ होता है।
3 6 इलायची हरे रूमाल में लपेटकर अपने पास रखें तथा इसके पश्चात एक इलायची व तुलसी पत्र का सेवन करना शुभ रहेगा।
१२. रूठे ग्रहों को मनाने के लिए :-
बेवजह कुत्तों को कष्ट देने से राहु की उग्रता बढऩे लगती है। कुत्तों को भोजन कराने से कुंडली में राहु की नाराजगी कम होती है। आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से सम्पूर्ण विश्व कर्म प्रधान है। हमारे शास्त्र भी कर्म बंधन की बात करते हैं। कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस कराई तो तस फलि चाखा, सकल पदार्थ है जग माही, कर्म हीन पर पावत नाहीं।
पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता है केवल रूप बदल जाता है। इसी प्रकार किया गया कर्म भी कभी निष्फल नहीं होता है। हम जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उपासना, यज्ञ और रत्न आदि धारण करने का विधान है। हम लोग जड़ की अपेक्षा सीधे जीव से संबंध स्थापित रखें तो ग्रह अतिशीघ्र प्रसन्न हो सकते हैं।
वेदों में कहा गया है कि….
मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: गुरु देवो भव: अतिथि देवो भव:।
हमारे शास्त्रों में सूत्र संकेतों के रूप में हैं जिन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।
अभिवादन शीलस्य नित्य
वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धते,
आयुर्विद्या यशो बलं॥
अर्थात मात्र प्रणाम करने से, सदाचार के पालन से एवं नित्य वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है। भगवान श्रीगणेश अपने माता-पिता में त्रैलोक समाहित मान कर उनका पूजन और प्रदक्षिणा (चक्कर लगाना) करने से प्रथम पूज्यनीय बन गए। यदि हम जीवों के प्रति परोपकार की भावना रखें तो अपनी कुंडली में ग्रहों की रुष्टता को न्यूनतम कर सकते हैं।
नवग्रह इस चराचर जगत में पदार्थ, वनस्पति, तत्व, पशु-पक्षी इत्यादि में अपना वास रखते हैं। इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आसपास के लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है। माता-पिता दोनों के संयोग से किसी जातक का जन्म होता है इसलिए सूर्य आत्मा के साथ-साथ पिता का प्रतिनिधित्व करता है और चंद्रमा मन के साथ-साथ मां का प्रतिनिधित्व करता है।
योग शास्त्र में दाहिने स्वर को सूर्य और बाएं को चंद्रमा कहा गया है। श्वास ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य और चंद्र हैं। योग ने इस श्वास को प्राण कहा है। आजकल ज्योतिष में तरह-तरह के उपाय प्रचलित हैं परन्तु व्यक्ति के आचरण संबंधी और जीव के निकट संबंधियों से जो उपाय शास्त्रों में वर्णित हैं कदाचित वे चलन में नहीं रह गए हैं।
यदि कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में हो, नीच का हो, पीड़ित हो तो कर्मविपाक सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि पिता रुष्ट रहे होंगे तभी जातक सूर्य की अशुभ स्थिति में जन्म पाता है। सूर्य के इस अनिष्ट परिहार के लिए इस जन्म में जातक को अपने पिता की सेवा करनी चाहिए और प्रात: उनके चरण स्पर्श करे और अन्य सांसारिक क्रियाओं से उन्हें प्रसन्न रखें तो सूर्य अपना अशुभ फल कम कर सकते हैं।
यदि सूर्य ग्रह रुष्ट हैं तो पिता को प्रसन्न करें, चंद्र रुष्ट है तो माता को प्रसन्न करें, मंगल रुष्ट है तो भाई-बहन को प्रसन्न करें, बुध रुष्ट है तो मामा और बंधुओं को प्रसन्न करें, गुरु रुष्ट है तो गुरुजन और वृद्धों को प्रसन्न करें, शुक्र रुष्ट है तो पत्नी को प्रसन्न करें, शनि रुष्ट है तो दास-दासी को प्रसन्न करें और यदि केतू रुष्ट है तो कुष्ठ रोगी को प्रसन्न करें। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार यदि हम प्रेम-सत्कार और आदर का भाव रख कर ग्रहों के प्रति व्यवहार करें तो रुष्ट ग्रह की नाराजगी को शांत किया जा सकता है।
१३. कुंडली में बुध कमजोर हो तो क्या करें :-
घर में तुलसी का पौधा लगाएं, बुधवार के दिन तुलसी पत्ते को प्रशाद के रूप में ग्रहण करें।
बुधवार के दिन हरे रंग की चूडियां हिजड़े को भेंट स्वरूप दें।
हरी सब्जी अथवा दाल पकाएं।
हरा चारा गाय को खिलाएं।
बुधवार के दिन गणेश जी के मंदिर में जाए प्रणाम करने के उपरांत मोदक का भोग लगाएं तथा बच्चों में बांट दें।
तोता पालने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
प्रत्येक बुधवार को ॐ बुं बुधाय नम: के जाप की 2 माला करें।
पांच बुधवार तक पांच कन्याओं को हरे वस्त्र दान करें।
बुधवार के दिन उपहार आदि में बुध से संबंधित वस्तुएं ना लें।
प्रति बुधवार गरीबों को हरे मूंग का दान करें।
प्रति बुधवार व्रत-उपवास करें।
आपकी कुंडली के अनुसार ज्योतिषी से सलाह लेकर बुध का रत्न व पन्ना धारण कर सकते हैं।
१४. कुंडली और मंगल ग्रह :-
विवाह संबंधों में मंगल दोष प्रमुख व्यवधान होता है और कई बार अज्ञानतावश भी मंगल वाली कुंडली का हौआ बना दिया जाता है और जातक का विवाह हो ही नहीं पाता। मंगल स्वभाव से तामसी और उग्र ग्रह है। यह जिस स्थान पर बैठता है उसका भी नाश करता है जिसे देखता है उसकी भी हानि करता है। केवल मेष व वृश्चिक राशि (स्वग्रही) में होने पर यह हानि नहीं करता। जब कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो पत्रिका मांगलिक मानी जाती है।
* प्रथम स्थान का मंगल सातवीं दृष्टि से सप्तम को व चतुर्थ दृष्टि से चौथे घर को देखता है। इसकी तामसिक वृत्ति से वैवाहिक जीवन व घर दोनों प्रभावित होते हैं।
* चतुर्थ मंगल मानसिक संतुलन बिगाड़ता है, गृह सौख्य में बाधा पहुँचाता है, जीवन को संघर्षमय बनाता है। चौथी दृष्टि से यह सप्तम स्थान यानी वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है।
* सप्तम मंगल जीवनसाथी से मतभेद बनाता है व मतभेद कई बार तलाक तक पहुँच सकते हैं।
* अष्टम मंगल संतति सुख को प्रभावित करता है। जीवन साथी की आयु कम करता है।
* द्वादश मंगल विवाह व शैय्या सुख को नष्ट करता है। विवाह से नुकसान व शोक का कारक है।
कब नष्ट होता है यह दोष :-
* मंगल गुरु की शुभ दृष्टि में हो
* कर्क व सिंह लग्न में (मंगल राजयोगकारक ग्रह है।)
* उच्च राशि (मकर) में होने पर।
* स्व राशि का मंगल होने पर
* शुक्र, गुरु व चंद्र शुभ होने पर भी मंगल की दाहकता कम हो जाती है।
* पत्रिका मिलान करते समय यदि दूसरे जातक की कुंडली में इन्हीं स्थानों पर मंगल, शनि या राहु हो तो यह दोष कम हो जाता है
कुंडली पढ़ना सीखें
१. माता-पिता की कुंडली और संतान :-
पूर्व जन्म तथा वर्तमान जन्म में जातक द्वारा किए गए कर्मों के फल से जातक के भाग्य का निर्माण होता है परंतु जातक के भाग्य निर्माण में जातक के अलावा अन्य लोगों के कर्मों का भी योगदान रहता है। प्राय: लोग इस ओर ध्यान नहीं देते।
कहा जाता है कि बाढ़हि पुत्र पिता के धर्मा। पूर्वजों के कर्म भी उनकी संतानों के भाग्य को प्रभावित करते हैं। दशरथ ने श्रवण कुमार को बाण मारा जिसके फलस्वरूप माता-पिता के शाप के कारण पुत्र वियोग से मृत्यु का कर्मफल भोगना पड़ा। किंतु इसका परिणाम तो उनके पुत्रों, पुत्रवधू समेत पूरे राजपरिवार यहां तक कि अयोध्या की प्रजा को भी भोगना पड़ा।
कहा जाता है कि संगति गुण अनेक फल। घुन गेहूं की संगति करता है। गेहूं की नियति चक्की में पिसना है। गेहूं से संगति करने के कारण ही घुन को भी चक्की में पिसना पड़ता है। देखा जाता है कि किसी जातक के पीड़ित होने पर उसके संबंधी तथा मित्र भी पीड़ित होते हैं। इस दृष्टि से सज्जनों का संग साथ शुभ फल और अपराधियों दुष्टों का संगसाथ अशुभ फल की पूर्व सूचना है। किसी भी अपराधी से संपर्क उसका आतिथ्य या उपहार स्वीकार करना भयंकर दुर्भाग्य विपत्ति को आमंत्रण देना है।
अत: यश-अपयश, उचित-अनुचित का हर समय विचार करके ही कोई काम करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से सुखद-दुखद स्थितियां बनती हैं।
माता-पिता की कुंडली से उनकी संतानों पुत्र-पुत्री के भाग्य के रहस्य प्रकट होते हैं। अत: कुंडली देखते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
२. भगवान श्रीकृष्ण जी की कुंडली की विवेचना :-
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद की अष्टमी बुधवार रोहिणी नक्षत्र में अवतार लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी महान लीलाआें के माध्यम से समाज को बताया कि महान व्यक्तियोंं को न केवल कठिनाइयों को बर्दाश्त करना पड़ता है, बल्कि उनसे प्यार भी करना पड़ता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराते हुए अर्जुन को दिव्य ज्ञान देते हुए संदेश दिया कि शांति का मार्ग ही प्रगति एवं समृद्धि का रास्ता है जबकि युद्ध का मार्ग सीधे श्मशान ले जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में पूर्ण पुरुष कृष्ण योगी और पंचम भाव में स्थित उच्च के बुद्ध ने जहां उन्हें वाकचातुर्य, विविध, कलाविद् बनाया, वहीं बिना हथियार से वाकचातुर्य से कठिन से कठिन कार्य भी सिद्ध किए तथा स्वगृही बृहस्पति ने आय भाव में, नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल ने और शत्रु भाव में स्थित उच्च के शनि ने वीराग्रणी और परम पराक्रमी बनाया।
माता के स्थान में स्थित स्वगृही सूर्य ने माता-पिता से दूर रखा। सप्तमेश मंगल और लग्र में स्थित उच्च के चन्द्र ने तथा स्वगृही शुक्र ने गोपी गण सेवित रसिक शिरोमणि और कलाप्रेमी सौन्दर्य-उपासक बनाया। लाभ घर के बृहस्पति, नवम भाव में उच्च के मंगल, छठे भाव में स्थित उच्च के शनि, पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थ भाव में स्थित उच्च के सूर्य ने महान पुरुष, शत्रुहन्ता, तत्वज्ञ, विजयी, जननायक और अमर र्कीतकारक बनाया।
इन्हीं ग्रहों के विराजमान होने के कारण तथा लग्र में उच्च के सूर्य के कारण चंचल नेत्र, समृद्धशाली, ऐश्वर्यवान एवं वैभवशाली चक्रवर्ती राज योग का निर्माण किया। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अधर्म पर धर्म की विजय की पताका फहराई पांडव रूपी धर्म की रक्षा की एवं कौरव रूपी अधर्मियों का नाश किया।
३. कुंडली में ग्रह तथा वास्तु का समन्वय :-
मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, अत: सुख शांतिपूर्वक रहने के लिए आवास में वास्तु की जरूरत होती है। नए घर के निर्माण के लिए भूमि चयन, भूमि परीक्षा, भूखंडों का आकार-प्रकार, भवन निर्माण विधि एवं पंच तत्वों पर आधारित कमरों का निर्माण इत्यादि बातों के बारे में जानकारी आवश्यक है।
जन्म कुंडली में चौथे भाव पर शुभ ग्रहों के अभाव व भावेश के बलाबल के आधार पर मकान सुख के बारे में जानकारी प्राप्त होती है तथा चौथे भाव भावेश अथवा इन पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों अथवा चौथे भाव भावेश का स्वामी जिस नक्षत्र पर हो, उस नक्षत्र स्वामी की दशा-अंतर्दशा से मकान का सुख प्राप्त होता है।
मंत्र : ओम नमो वैश्वानर वास्तु रुपाय भूपति एवं मे देहि काल स्वाहा।
भूखंड का आकार आयताकार, वर्गाकार, चतुष्कोण अथवा गोलाकार शुभ होता है।
भूमि परीक्षण के क्रम में भूखंड के मध्य में भूस्वामी अपने एक हाथ से लम्बा चौड़ा व गहरा गड्ढा खोदकर उसे उसी मिट्टी से भरने पर मिट्टी कम हो जाने से अशुभ लेकिन सम या मिट्टी शेष रहने में उत्तम जानें। दोष-निवारण के लिए उस गड्ढे में अन्य जगह से शुद्ध मिट्टी लाकर भर दें। खुदाई करने पर चूडिय़ां, ऐनक, सर्प, बिच्छू, अंडा, पुराना कोई वस्त्र या रूई निकले तो अशुभ जानें। निवारण के लिए उपरोक्त मंत्र को कागज में लिख कर सात बार पढ़कर पूर्व दिशा में जमीन में गाड़ दें।
४. कुंडली में जानिए आपकी पत्नी कैसी होगी? :-
हर पुरुष की तमन्ना होती है कि उसे सुंदर पत्नी मिले। इसीलिए हर पुरुष अपनी होने वाली पत्नी के बारे में जानने के लिए उत्साहित रहता है लेकिन वह सोच नहीं पाता कि वह ऐसा कैसे करें?
ये सब जानने के लिए अपनाइए ये आसान सा तरीका। जी हां इस तरीके से आप खुद ही जान लेंगे कि आपकी पत्नी सुंदर होगी या सामन्य रुप रंग की। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली का सातवां घर विवाह स्थान होता है। अगर कुण्डली में शुक्र पहले घर में बैठा हो या गुरू से सातवें घर में शुक्र बैठा है तो सुंदर पत्नी प्राप्त होती है।
सातवें घर में जो राशि है उस राशि के स्वामी ग्रह को शुक्र देख रहा हो या गुरू सातवें घर में बैठा है तो सुंदर जीवनसाथी प्राप्त होता है। कुंडली में अगर शुक्र सातवें घर में तुला, वृष या कर्क राशि में बैठा है तो आपकी पत्नी गोरे रंग की होगी और उसके नयन नक्श आकर्षक होंगे।
५. प्रॉपर्टी में निवेश और ग्रहों की चाल :-
जमीन-जायदाद में निवेश करना आज के समय में फायदे का व्यापार साबित हो रहा है। प्रॉपर्टी में निवेश के ग्रह नक्षत्रों का संबंध ज्योतिष से बहुत गहरा होता है। किस व्यक्ति को प्रॉपर्टी में निवेश से फायदा होगा, इसका निर्धारण उसकी जन्मपत्री में इस व्यापार से संबंधित ग्रह व भाव के अवलोकन से हो सकता है। प्रॉपर्टी में निवेश करने से पहले इन ग्रहों को जान लेना जरूरी होता है।
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद तथा भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव तथा उसका स्वामी ग्रह शुुभ राशि में, शुभ ग्रह या अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो, किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट न हो तो, जमीन संबंधी व्यापार से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भूमि का कारक ग्रह मंगल है। अत: कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा मंगल की शुभ स्थिति से भूमि संबंधी व्यापार से फायदा होगा।
भूमि के व्यापार में जमीन का क्रय-विक्रय करना, प्रॉपर्टी में निवेश कर लाभ में बेचना, दलाली के रूप में काम करना तथा कॅालोनाइजर के रूप में स्कीम काटकर बेचना इत्यादि शामिल है, ऐसे सभी व्यापार का उद्देेश्य आय बढ़ाकर धन कमाना होता है। अत: भूमि से संबंधित ग्रहों का शुभ संयोग कुंडली के धन (द्वितीय) तथा आय (एकादश) भाव से भी होना आवश्यक है।
चतुर्थ भाव का स्वामी एवं मंगल उच्च, स्वग्रही अथवा मूल त्रिकोण का होकर शुभ युति में हो तथा धनेश, लाभेश से संबंध बनाए तो प्रॉपर्टी के कारोबार से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव का स्वामी धनेश, लाभेश, लग्न अथवा दशम भाव के स्वामी से राशि परिवर्तन करे तो, उस व्यक्ति को भूमि के क्रय-विक्रय से धन लाभ होता है।
६. धन लाभ कब और कैसे? :-
जमीन-जायदाद में निवेश करना आज के समय में फायदे का व्यापार साबित हो रहा है। प्रॉपर्टी में निवेश के ग्रह नक्षत्रों का संबंध ज्योतिष से बहुत गहरा होता है। किस व्यक्ति को प्रॉपर्टी में निवेश से फायदा होगा, इसका निर्धारण उसकी जन्मपत्री में इस व्यापार से संबंधित ग्रह व भाव के अवलोकन से हो सकता है। प्रॉपर्टी में निवेश करने से पहले इन ग्रहों को जान लेना जरूरी होता है।
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद तथा भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव तथा उसका स्वामी ग्रह शुुभ राशि में, शुभ ग्रह या अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो, किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट न हो तो, जमीन संबंधी व्यापार से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भूमि का कारक ग्रह मंगल है। अत: कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा मंगल की शुभ स्थिति से भूमि संबंधी व्यापार से फायदा होगा।
भूमि के व्यापार में जमीन का क्रय-विक्रय करना, प्रॉपर्टी में निवेश कर लाभ में बेचना, दलाली के रूप में काम करना तथा कॅालोनाइजर के रूप में स्कीम काटकर बेचना इत्यादि शामिल है, ऐसे सभी व्यापार का उद्देेश्य आय बढ़ाकर धन कमाना होता है। अत: भूमि से संबंधित ग्रहों का शुभ संयोग कुंडली के धन (द्वितीय) तथा आय (एकादश) भाव से भी होना आवश्यक है।
चतुर्थ भाव का स्वामी एवं मंगल उच्च, स्वग्रही अथवा मूल त्रिकोण का होकर शुभ युति में हो तथा धनेश, लाभेश से संबंध बनाए तो प्रॉपर्टी के कारोबार से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव का स्वामी धनेश, लाभेश, लग्न अथवा दशम भाव के स्वामी से राशि परिवर्तन करे तो, उस व्यक्ति को भूमि के क्रय-विक्रय से धन लाभ होता है।
७. कुंडली और भाग्य उदय :-
व्यक्ति जीवन में सफल हो तो जीवन में खुशियां अपने आप आ ही जाती हैं लेकिन असफल होने पर सारे सुख-साधन व्यर्थ और जीवन नीरस लगने लगता है। जीवन में ऊर्जा आत्मविश्वास बनकर हमारे व्यक्तित्व में झलकती है तो सफलता बनकर करियर में। जितना हमारे व्यवक्तिगत गुण और संस्कार महत्व रखते हैं, उतना ही महत्व रखता है हमारा भाग्य और हमारे आसपास के वातावरण में मौजूद अदृश्य ऊर्जाशक्तियां ।
हकीकत में धन ध+न का रहस्य वे ही समझ पाएं है जो ध यानी भाग्य और न यानी जोखिम दोंनो को साथ लेकर चलते रहे हैं। जन्म कुंडली में जिस स्थान पर धनु और वृश्चिक राशियां होंगी उसी स्थान से धन कमाने के रास्ते खुलेंगे। जब जोखिम है तो भाग्य को आगे आना ही है, जब तक जोखिम नहीं है तब तक भाग्य भी नहीं है।
गुरु सोना है तो मंगल पीतल अब होता यह है की ऐसी अवस्था में जब भी मंगल और गुरु की युति हो जाती है तो पीतल सोने की चमक को दबाने लगता है। सोने में मिलावट होनी शुरू हो जाती है अर्थात काबिल होते हुए भी आपकी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन नहीं होता। आपसे कम गुणी लोग आपको ओवरटेक करके आगे निकल जाते हैं और धन कहां से बचना है जब व्यय के रूप में मंगल व रोग के रूप में शुक्र लग्न में बनने वाले धनपति योग को तबाह करने पर तुल जाते हैं तो पैसा आने से पहले उसके जाने का रास्ता तैयार रहता है।
ऐसी अवस्था में किसी वशिष्ट विद्वान के परामर्श से सवा सात रत्ती का पुखराज धारण करें। प्रतिदिन माथे पर चन्दन का तिलक लगाएं, शुक्र को हावी न होने दें अर्थात महंगी बेकार की वस्तुएं न खरीदें ,खाने पीने ,पार्टी दावत,व महंगे परिधानों पर बेकार खर्च न करें।
कुंडली में लग्न से नवां भाव भाग्य स्थान होता है। भाग्य स्थान से नवां भाव अर्थात भाग्य का भी भाग्य स्थान पंचम भाव होता है। द्वितीय व एकादश धन को कण्ट्रोल करने वाले भाव होते हैं। तृतीय भाव पराक्रम का भाव है.अततः कुंडली में जब भी गोचरवश पंचम भाव से धनेश, आएश, भाग्येश व पराक्रमेश का सम्बन्ध बनेगा वो ही समय आपके जीवन का शानदार समय बनकर आएगा। ये सम्बन्ध चाहे ग्रहों की युति से बने चाहे आपसी दृष्टि से बनें।
क्या होती हैं काल पुरुष की कुंडली :- कुंडली भाव कैसे देखे
काल पुरुख जिसकी कल्पना हम ज्योतिष शास्त्र में करते हैं और जिसके रचयता ब्रह्माजी हैं और जो सम्पूरण जातकों का प्रतिनिधितव भी करता है वह असल में किस प्रकार से कार्य करता है !
यहाँ पर विचारणीय बात ये भी है की जिस लाल किताब का आज इतना प्रचार किया जा रहा है वो भी इसी काल पुरुख लगन से प्रेरित है और उसका महत्व उपचार पर ज्यादा है .
इसी प्रकार से अंक विद्या केपी सिस्टम जो की बहुत ही सटीकता से फोरकास्टिंग करता है और न जाने कितने सिस्टम हैं ज्योतिष विद्या में वे सब के सब अपने आप में महत्व पूरण माने जाते हैं पर उन सब का आधार यही काल पुरुख कुंडली माना जाता है
इसके बाहर तो ज्योतिष शास्त्र की कल्पना करना भी बेकार है !
१ .प्रथम भाव :-
उसमें काल पुरुख की मेष राशि यानी एरीज जोडिएक पड़ता है और जिसका के स्वामित्व हम मंगल गृह को मानते हैं वह मंगल फिर अष्टम भाव का भी स्वामी मन जाता है क्यों की उसकी दूसरी राशि वृश्चिक वहां पड़ती है और दोनों राशियों का अपना अलग प्रभाव मन जाएगा .
तो हम बात कर रहे थे पहले भाव की वहां मेष राशी जिसका स्वामी मंगल को माना जाता है व रुधिर जिसे हम खून भी कहते है का शरीर में प्रतिनिधितव करता करता है और मंगल को हम उत्साह व उर्जा का कारक भी मानते हैं दुसरे वहां पर सूर्य उच्च का मन जाता है वह भी उर्जा का प्रकार मन जाता है तो दोनों मंगल और सूर्य उर्जा के कारक होने के साथ साथ अग्नि के कारक भी है इसलिए ये जीवन के संचालक गृह प्रथम भाव के कारक बनाये गए जो की पूरण तया तर्कसंगत मन जाएगा .
अब मेडिकल साइंस के मुताविक भी इनका यही मतलव निकलता है क्यों को विज्ञान भी यही मानता आया है की ये सारा ब्रह्माण्ड एक उर्जा के आधीन है और प्रमाणित व प्रतक्ष रूप से सूर्य तो इसका प्रमाण है ही .
अब विचारनिए बात यह है की जीवन जीने के लिए वो भी सही जीवन जीने के लिए हमें इस उर्जा का सही समन्वय करना पड़ता है नहीं तो हम कहीं न कहीं पिछड़ना शुरू हो जाते हैं सो हमें उर्जा का नेगेटिव या पॉजिटिव प्रयोग करना आना चाहिए .
अपनी अपनी पर्सनल होरोस्कोप में देखने पर इन दोनों उर्जा युक्त ग्रहों का किस प्रकार से बैठे हैं
किन किन नक्षत्रों में
उप नक्षत्रों में और आगे उप उप नक्षत्रों में
नव्मंषा कुंडली में
षोडस वर्गों में
अष्टक वर्गों में
पराशर शास्त्र अनुसार की प्लेनेट और न जाने और कितनी विधियों अनुसार देखने के वाद ही ये पता चलता है के वे गृह कितने बलवान हैं .
मात्र एक आधी विधि अपूरण मानी जाती गयी है और विचारनिए बात ये भी है के आज के वक्त में इस पवित्र शास्त्र का मज़ाक बना कर रख दिया गया है मात्र सिर्फ भौतिकता के चलते ऐसा हो रहा है ,क्यों के हर आदमी दो चार किताबें पढ़ कर अपने आप को ज्ञानी मानने लगता है और आज जब सब कुछ कोमर्शिअल यानी व्यावसायिक सोच सब पर हावी हो चुकी है तो हर चीज की सैंक्टिटी यानी पवित्रता ख़तम हो रही है
जब स्वार्थ हावी हो जाए तो अक्ल पर पर्दा पड़ना शुरू हो जाता है , तो हम यहाँ देखते हैं के इन दोनों ऊर्जायों का हम कैसे सही इस्तेमाल करते हैं और जैसे के अगर कहीं न कहीं कोई ग्रहों में कमी पूर्व जनित कर्मो के कारण आ गयी हो तो हम उसमे काफी हद तक सुधार भी ला सकते हैं .
हालांकि वह सुधार अपनी अपनी बिल्पावेर यानि इच्छा शक्ति करम और प्रभु पर पूरण भरोसा इसी के चलते पूरण हो पाती है
२. कुटुम्भ व धन भाव :-
बात करते हैं दुसरे भाव की यानि कुटुम्भ व धन भाव की तो वहां का स्वामित्व शुक्र व् चन्द्र को दिया है और कारक गुरु को माना गया है , इसलिए की शुक्र भौतिक गृह है और भौतिक सुखों को प्राप्त करने के लिए धन की ज़रुरत पड़ती ही है |
विचारनिए बात यहाँ ये भी है के गुरु को दुसरे पांचवे नवं और एकादस का कारक भी माना गया है क्यों की सब असली निधियों का स्वामी गुरु ही होता है जो के किसी के साथ कभी पक्षपात नहीं करता और अगर ये ही अधिकार दुसरे गृह को दिया गया होता तो व ज़रूरी पक्षपात करता तो यही वृहस्पति का बढ़प्पन माना जाता है जो की किसी के साथ कभी अन्याय नहीं करते हैं और सबको सद्बुधि देने वाले गृह माने जाते हैं !
हम यह भी देखते हैं के दूसरा भाव मारकेश का भी मन जाता है वजह चाहे जो भी रही हो मसलन के अष्टम जो के आयु का भाव माना गया है उससे अष्टम यानी तृत भाव से दवाद्ष भाव यानी दूसरा भाव इसलिए इसे मारकेश माना जाएगा |
परन्तु दर्शन के रूप में देखें तो यही पता चलता है के शुक्र और चन्द्र के रूप में जो हम भौतिकता जब वृहस्पति रुपी प्यूरिटी को हम एक्सक्लूड यानि बाहर करना शुरू करते हैं तो वह मारक का काम करना शुरू कर देती है |
हम यहाँ इसको लॉजिकल एंगल से देखें तो यही निष्कर्ष निकलता है के बिना मतलब का बिना मेहनत और गलत तरीकों से कमाया भौतिक सुख आखिरकार हमारे लिए मारकेश का ही काम करेगा.
३. तीसरा और आगे छठा भाव :-
तीसरा और आगे छठा भाव दोनों का स्वामी और कारक बुध व मंगल को माना जाएगा यहाँ पर बुध भाई बहनों का और छठे भ्हाव में बंधू बांधवों का जो इए वे भी भाई बहनों के रूप में हमारे सामने आते हैं का कारक बन जाता है |
दूसरा है मंगल तो इन दोनों ग्रहों की इसलिए स्वामित्व मिला के बुध रुपी लचकता व जुबान से और पराक्रम से ही हम बंधुयों के साथ इंटरैक्ट करते हैं |
बुध यानी जुबान का उचित प्रयोग ही हमें सबका मित्र या शत्रु बनाता है और सही व पॉजिटिव मंगल रुपी साहस और पराक्रम हमें विजयी बनाता है !
इस के साथ हम इनके दुसरे भाव यानि छठे भाव को भी देखें के जो की शत्रुता व रोग और ऋण का स्वामी होता है उस संधर्भ में हम देखते हैं के दोनों ग्रहों का सही तालमेल हमें विजेता बनाता है |
शत्रु का यहाँ लॉजिकल मतलव जीवन रुपी संघर्ष से है तो यहाँ हम देखते हैं के कैसे वही दोनों गृह उन चीजों का सही रूप में निपटारा करते नज़र आते हैं और कैसे दो धारी तलवार की तरह बन जाते हैं |
४. चतुर्थ भाव :-
चतुर्थ भाव की बात करें तो यह भाव सुख का मन जाता है और इस भाव का स्वामी चन्द्र और कारक वृहस्पति को माना जाता है ,ये दोनों गृह जब आपस में मिलते हैं तो कुंडली में एक प्रकार का गजकेसरी योग बना देते हैं | गजकेसरी यानी गज का यहाँ मतलब हाथी से है तो केसरी शेर को कहते हैं जब दोनों ताक़तवर मिल जाएँ तो क्या कहना| ठीक इसी प्रकार से इन दोनों ग्रहों की कल्पना की गयी और उन्हें सुख स्थान का स्वामी बनाया गया |वैसे भी हम देखें तो सिर्फ वृहस्पति ही ऐसा गृह नज़र आता है जो सौर मंडल में सबसे बड़ा और ज्ञान का दाता माना गया है अगर और किसी गृह को ये अधिकार दे दिया होता जैसे शुक्राचार्य को तो जो के सिर्फ वाहरी भौतिक सुखों का कारक है तो क्या होता !
चतुर्थ स्थान माँ का भी माना गया है और ज्योतिष में चन्द्र को माँ का कारक माना जाता है, माँ के आँचल में ही संतान को सुख मिलता है !
५. पंचम भाव :-
पंचम भाव का स्वामी सूर्य और कारक वही गुरु को बनाया गया क्यों की सूर्य रुपी प्रकाश द्वारा ही हम पंचम रुपी विद्या ग्रहण करते हैं और इसके संतान कारक होने का कारण भी यही है के संतान ही अपने माता पिता का नाम रौशन करती है |
इसी पंचम से हर व्यक्ति की मानसिकता भी देखी जाती है तो उन कारकों की पोजीशन के अनुसार ही हम कोई निर्णय ले सकते हैं !
६. सातवाँ भाव :-
सातवाँ भाव पति या पत्नी और काम का माना जाता है और इसका स्वामी फिर शुक्र बन जाता है |
शुक्र जिसे हम इस दुनिया में भौतिक सुखों का कारक मानते हैं वही नर यानी मंगल यानि रुधिर और मादा यानी शुक्र यानी वरीय रूप से श्रृष्टि का कारण बनता है वैसे भी लॉजिक एंगल से देखें तो शरीर में इन दोनों तत्वों का होना ही जीवन का कारण बनता है !
अब यही सप्तम भाव फिर मारक बन जाता है क्यों की जब हम भौतिकता की अधिकता या कह सकते हैं के भौतिक सुख को प्राप्त करने के एवज में मारकता सहन करनी ही पड़ती है !
७. अष्टम भाव :-
अष्टम भाव जिसे आयु और कष्टों का भाव माना जाता है उसका स्वामी फिर वही मंगल और कारक शनि बन जाता है तो अगर मंगल उर्जा के रूप में हमें जीवन देता है तो वही उर्जा दिए और वाती की तरह जब धीमी पड़नी शुरू हो जाती है तो जीवन ख़तम हो जाता है |
जैसे जितना तेल हम दीपक में डालेंगे उतनी ही देर तक वह जलता रहेगा और उसके बाद उसे बुझना ही पड़ेगा इसी प्रक्कर से अष्टम भाव कार्य करता है !
८. नवम भाव :-
नवम भाव के बारे में चर्चा करेंगे के यह भाव धरम का और भाग्य का माना जाता है और इसका स्वामी और कारक सिर्फ एक की गृह बनता है वो है देव गुरु वृहस्पति जो के समस्त सुखों का कारक है और हमें यही सन्देश देता है के हमें मानवता का धर्म अपनाते हुए ही करमरत रहना चाहिए |
क्यों की चाहे इस संसार में आदमी ने कितने धरम बनाये हैं वो अपनी व्यक्तिगत सोच और परम्परा के अनुसार बनाये जाते हैं पर कल्पुरुख लग्न के रूप में ईश्वर ने सिर्फ एक ही धरम बनाया जो की सिर्फ मानवता ही है वैसे भी धरम का मतलब होता है धारण करना यानी आप किसी विचार को धारण करते हैं और उसके बनाये नियम में चलते हैं |
ये सब कुछ तभी बनाये गए क्यों की यह संसार विविद्ध संस्कृतियों के मेल जोल से बनता है और हम एक दुसरे का आदर करते हुए सबसे कुछ न कुछ सीखते रहते हैं पर इस चीज़ को न भूलते हुए के इश्वर को सिर्फ और सिर्फ मानवता का ही धरम अच्छा लगता है |
तभी जब काल्पुरुख कुंडली की ब्रह्मा ने कल्पना की होगी तो शुक्र रुपी भौतिकता का ख्याल ना आते हुए
आध्यात्मिक देव गुरु वृहस्पति को ही इस पदवी का हक़दार बनाया गया क्यों की तमाम धरम ग्रंथों व गीता का भी अंत का सन्देश सिर्फ मोक्ष को ही माना गया जिसका सन्देश योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था और इस पर निरर्थक वादविवाद से कोई फायदा नहीं क्यों की मोक्ष का कांसेप्ट बहुत गहरा है जो हर किसी के बस की बात नहीं !
१०. दसम भाव और एकादस भाव :-
दसम भाव का स्वामी और एकादस भाव का स्वामी सिर्फ शनि को माना गया है और कारक दसम भाव का कर्म को माना गया है दसम भाव ही कर्म करने की प्रेरणा देता है इसके और कारक जैसे सूर्य बुध भी माने जाते हैं पर मुख्यता शनि को इसका अधिकार मिलता है |
वहीँ ग्यारह भाव का स्वामी भी शनि ही बनता है जिसका कारक गुरु को बनाया गया इससे यही निष्कर्ष निकलता है की शनि रुपी करम जो के धीमी गति से चलता रहता है वही एकादस के रूप में धीमी गति से गुरु के रूप में कैश फ्लो भी निरंतर देता रहता है यानी करम करोगे तभी फल के हकदार बन पायोगे यही शनि का सन्देश है |
और शनि का एक और भी सन्देश है की निष्काम भाव से किये हुए करम का असली फल गुरु के रूप में मिलता है|
शनि सिर्फ और सिर्फ करम वो भी असली करम यानी वह करम जिससे किसी को हानि न पहुंचे उसका फल ज़रूर अच्छा देता है और गलत करम हालांकि हम कहीं ना कहीं करम करने को मजबूर भी होते हैं परन्तु विवेक और बुधि का इस्तेमाल तो खुद ही करना पड़ता है उस रूप में भी शनि का न्याय चक्र हमें नहीं छोड़ता उसकी चाहे जितनी पूजा कर लो ,व्रत रख लो मंत्र पढ़ लो इससे शनि कभी प्रभावित नहीं होते , शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें सही कर्म करने पढेंगे तभी शनिदेव हमारी पुकार सुनेगें |
नहीं तो ये कुछ ऐसा हुआ के कबूतर ने बिल्ली को देखा और आँखें बंद कर ली उससे तो बिल्ली उसे ज़रूर खाएगी सो कर्म की असली परिभाषा को समझते हुए ही कर्म करेंगे तो ज़रूर अच्छा फल मिलेगा !
११. बारहवां भाव :-
द्वादस यानी बारहवां भाव माना जाता है उसका स्वामी भी वृहस्पति को बनाया गया जो के नवं भाग्य और धरम का भी स्वामी है उसका सन्देश यही है के अच्छे कर्म करते रहने से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी और ये भाव खर्च का भी बनता है जो यही सन्देश देता है की अच्छे कामों में हमें अपना धन लगाना चाहिए
और इस संसार में प्रथम भाव के रूप में जनम लेने के बाद सांसारिक जिम्मेदारियों का अच्छे रूप से निर्वहन करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति की और कदम बढ़ाने चाहियें तभी हमारा जीवन में आने का असली मकसद पूरण हो पायेगा.
जानिए कैसे करें कुंडली का मिलान
कुंडलियों का मिलान :-
निम्न प्रकार की ग्रह स्थितियां जीवन में कटुता पैदा कर तनाव के लिए उत्तरादायी हो सकती हैं। अत: ऐसी ग्रह स्थितियों में दोनों की कुंडलियों का मिलान कराने के बाद ही विवाह करने का निर्णय करना चाहिए।
जन्म कुंडली में ग्रहो की चाल
शनि सूर्य राहु 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश ) तथा राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी (जैसे राहु मीन राशि में हो तो मीन का स्वामी गुरु राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी होगा) ये पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं।
इनमें से किन्हीं दो या अधिक ग्रहों का युति अथवा दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव/भाव स्वामी से होता है तो उसे नुक्सान पहुंचाते हैं। अत: सप्तम भाव अथवा उसके स्वामी को इन ग्रहों द्वारा प्रभावित करने पर दाम्पत्य जीवन में कटुता आती है।
सप्तम भाव में शनि :-
सप्तमेश जन्म लग्न से 6 8 12वें भाव में हो अथवा नीच शत्रुक्षेत्रीय या अस्त हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा। सप्तम भाव में शनि पार्टनर को नीरस बनाता है |
मंगल से तनाव होता है , सूर्य आपस में मतभेद पैदा करता है। सप्तम भाव में बुध-शनि दोनों नपुंसक ग्रहों की युति व्यक्ति को भीरू (डरपोक) तथा निरुत्साही बनाते हैं। यदि इन ग्रह स्थितियों के कोई अन्य परिहार (काट) अथवा उपाय जन्मकुंडली में उपलब्ध नहीं हों तो विवाह नहीं करें।
बुध तथा शुक्र सप्तम भाव के कारक :-
बुध तथा शुक्र सप्तम भाव के कारक हैं। अत: बुध अश्लेषा ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में रहते हुए अकेला सप्तम भाव में हो अथवा शुक्र-भरणी पूर्वा फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में रहते हुए अकेला सप्तम भाव में हो तथा इन पर किसी अन्य ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो त्रिखल दोष के कारण सुखी दाम्पत्य जीवन में बाधक बनेंगे।
कलत्र कारक शुक्र वैवाहिक तथा यौन संबंधों का नैसर्गिक कारक है। अत: शुक्र बली स्वराशि उच्चगत हो अथवा शुभ भावों (केंद्र-त्रिकोण) में स्थित हो तथा दूषित प्रभाव से मुक्त हो तो अन्य दूषित ग्रहों का प्रभाव होते हुए भी दाम्पत्य जीवन को सुखद बनाता है।
इसके विपरीत शुक्र के अशुभ प्रभाव में नीचगत अथवा त्रिक भाव में होने पर दाम्पत्य जीवन के लिए कष्टकारक हो सकता है। इसी प्रकार शुक्र-मंगल की युति अति कामुक और उत्साही बनाती है। सूर्य तथा शनि के साथ मिलकर शुक्र जातक की यौन शक्ति को कम करके नीरसता लाता है। इन परिस्थितियों में शुक्र ग्रह के उपाय मंत्र दान व्रत करने से लाभ मिलता है।
* अष्टकूट गुण मिलान में ध्यान रखें :-
• शुद्ध भकूट और नाड़ी दोष रहित 18 से अधिक गुण हों तो विवाह शुभ मान्य होता है।
• अशुद्ध भकूट (द्विद्र्वादश नवपंचम षड़ाष्टक) होने पर भी यदि मित्र भकूट की श्रेणी में हो तो 20 से अधिक गुण होने पर विवाह श्रेष्ठ माना जाता है।
• शत्रु षड़ाष्टक (6-8) भकूट दोष होने पर विवाह नहीं करें। दाम्पत्य जीवन में अनिष्ट की संभावना रहेगी।
• मित्र षड़ाष्टक भकूट दोष में भी पति-पत्नि में कलह होती रहती है। इसलिए षड़ाष्टक भकूट दोष में विवाह करने से सदैव बचना चाहिए।
• नाड़ी दोष के साथ यदि षड़ाष्टक भकूट दोष (चाहे मित्र षड़ाष्टक हो अथवा दोनों की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो) हो तो विवाह कदापि नहीं करें।
• शुद्ध भकूट से गुण-दोष का परिहार स्वत: ही हो जाता है।
* मेष लग्न की कुंडली :-
मेष लग्न के कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी शुक्र व राशि तुला होती है शुक्र विवाह का कारक है अत: सुंदर व सुशिक्षित वर प्राप्त होगा। शुक्र कला प्रेमी व सौंदर्य के प्रतीक हैं अत: वर घर की साज सज्जा पर विशेष ध्यान देगा।
* वृष लग्न की कुंडली :-
इस राशि का सप्तमेश मंगल व राशि वृश्चिक है, ऐसी कन्या का पति कम पढ़ा-लिखा, गुस्सैल व रूखे स्वभाव वाला होगा। ऐसे जातक का जीवन संघर्षमय होगा व अक्सर किसी न किसी परेशानी का सामना करते रहना होगा।
* मिथुन लग्न की कुंडली :-
इस लग्न की कन्या के सप्तम भाव में गुरु की राशि धनु होती है। ऐसी कन्या का पति सुंदर, गौरवशाली होगा। इनको अवज्ञा पसंद नहीं है, ऐसा होने पर ये बहुत क्रोधित हो जाते हैं। इस लग्न की कन्या बहू पुत्रवान होती है।
* कर्क लग्न की कुंडली :-
इस लग्न का स्वामी चंद्रमा व सप्तमेश शनि होते हैं। ऐसी कन्याओं के पति अध्ययन की बजाय शौकीन ज्यादा होते हैं, कन्या की आयु से उम्र में बड़ा होने की संभावना होती है,
स्वभाव से क्रोधी व परा-शक्तियों में विश्वास करने वाला होता है। अपने आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु वह किसी भी प्रकार का त्याग कर सकता है, परंतु अपने गर्व पर चोट सहन नहीं कर सकता।
* सिंह लग्न की कुंडली :-
इस लग्न की कन्या के सप्तम भाव में भी शनि की राशि कुंभ होती है, इस लग्न की कन्या का पति जीवन में अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कठिन से कठिन मेहनत करने वाला, बड़ों की सेवा करने वाला, परहित व दूसरों की भलाई करने वाला, गुणवान व श्रेष्ठ संतान का पिता होता है, ऐसा व्यक्ति अपना निर्माण स्वयं करता है।
* कन्या लग्न की कुंडली :-
इस लग्न वाली कन्या के सप्तम भाव में गुरु की मीन राशि होती है। ऐसी कन्या का पति आस्थावान, सुंदर, वाकपटु, धार्मिक वृत्ति वाला व भाग्यशाली होता है।
* तुला लग्न की कुंडली :-
तुला लग्न की कन्या का सप्तमेश मंगल व राशि मेष होती है। वर क्रोधी स्वभाव, जिद्दी, बात-बात पर कलह करने वाला व अशांत वातावरण बनाए रखने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा स्वयं के बारे में ही सोचता है किसी अन्य के बारे में नहीं,जो स्तर इस व्यक्ति का होता है उससे अधिक प्रदर्शन की आदत होती है यद्यपि इनका वैवाहिक जीवन सुखमय व सफल रहता है।
* वृश्चिक लग्न की कुंडली :-
इस लग्न की कन्या का सप्तमेश शुक्र व राशि वृष होती है। ऐसा व्यक्ति शांत स्वभाव, कर्मयोगी, किसी विशेष विधा में प्रवीण व भावुक किस्म का व्यक्ति होता है। इस कन्या के गुस्से व गर्म मिजाज को इसका पति सहजता से आत्मसात कर लेता है व दांपत्य-जीवन में मधुरता बनाए रखने का प्रयास करता रहता है।
* धनु लग्न की कुंडली :-
धनु लग्न की कन्या के सप्तम भाव में बुध की मिथुन राशि होती है, ऐसी कन्या का पति व्यावसायिक वृत्ति वाला, शालीन, उच्च विचार व भाग्यशाली होता है। सुंदरता का पुजारी व हमेशा साफ सफाई पसंद करने वाला होता है।
* मकर लग्न की कुंडली :-
इस लग्न की कन्या के सप्तम भाव में चंद्रमा की कर्क रशि होती है ऐसी कन्या का पति स्वभाव से जिद्दी व दोहरे स्वभाव वाला,मधुर वाणी व भावुक प्रवृति वाला होता है। अनुशासन,भय की बजाय भावनाओं से इन पर नियंत्रण किया जा सकता है। ऐसे व्यक्तियों में विषम परिस्थितियों को सहन करने की आदत कम होती है।
* कुम्भ लग्न की कुंडली :-
इस लग्न वाली कन्या का पति अपनी बात पर अडिग रहने वाला, स्वभाव से क्रोधी, दूसरों की सलाह नहीं मानने वाला होता है। सुंदरता से इन्हें कोई मतलब नहीं, प्रत्येक व्यक्ति से मेल-मुलाकात करना इनका स्वभाव होता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार से हर हालात को अपने अनुरूप करने में प्रवीण होता है। झूठ से इनको चिढ़ होती है।
* मीन लग्न की कुंडली :-
मीन लग्न वाली कन्या के सप्तमेश बुध व राशि कन्या होती है। वर सुंदर व मृदुभाषी होने के साथ-साथ कम बोलने वाला, हंसमुख स्वभाव व बात बात पर शरमाने वाला होता है। मन में अनेक इच्छाएं रखते हुए भी अपने व्यक्तित्व पर उन इच्छाओं को हावी नहीं होने देता हैं |
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कुंडली में सरकारी नौकरी के योग
प्रिय दर्शकों/पाठकों, किसी भी व्यक्ति के जीवन में हो रहीं, छोटी या बड़ी हर प्रकार की घटनाओं के लिए कुंडली के ग्रहों का बहुत बड़ा हाथ होता है। कुंडली में जिस प्रकार का ग्रह शक्तिशाली होता है उसी प्रकार के परिणाम भी व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि अथक मेहनत और परिश्रम के बाद भी व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्ति में सफलता नहीं मिल रही होती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकारी नौकरी का निर्धारण व्यक्ति की योग्यता, शिक्षा, अनुभव के साथ-साथ उसकी जन्मकुंडली में बैठे ग्रह योगों के कारण भी होता है। आइये जानते हैं कि वह कौन-से ग्रह योग होते हैं जो सरकारी नौकरी प्राप्ति में मदद करते हैं।
सरकारी नौकरी के लिए कुंडली में निम्न योगों का होना शुभ माना जाता है…
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुंडली में दशम स्थान को (दसवां स्थान) को कार्यक्षेत्र के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को देखने के लिए इसी घर का आंकलन किया जाता है। दशम स्थान में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बन जाता है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दशम में तो यह ग्रह होते हैं लेकिन फिर भी जातक को संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है तब जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आपके यह ग्रह पाप ग्रहों से बचे हुए रहें।
अगर जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु(ब्रहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग उत्पन्न करते हैं
केंद्र में अगर चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए अच्छे योग बन जाते हैं। साथ ही साथ इसी तरह चन्द्रमा और मंगल भी अगर केन्द्रस्थ हैं तो सरकारी नौकरी की संभावनायें बढ़ जाती हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने करियर क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने करियर क्षेत्र में अधिक सफलता नहीं मिल पाती है।
ज्योतिष के अन्दर इस तरह की समस्या के लिए उपयुक्त उपचार भी मौजूद हैं। जातक की कुंडली का पूरा आंकलन करने के बाद ही उपायों को सुझाया जा सकता है। जो शुभ ग्रह कमजोर हैं उन्हें बलवान बनाकर और अशुभ ग्रहों को शांत कर, इस तरह की समस्याओं का अंत किया जा सकता है।
महालक्ष्मी योग, नृप योग, गजकेसरी योग, पारिजात योग, छत्र योग
ये योग आपके जीवन के हर कार्य से जुड़े है और यदि ये आपके पक्ष में है तो आपको किसी भी तरह से कभी भी कोई परेशानी नही उठानी पड़ेगी और आपको आपके हर कार्य में सफलता जरुर प्राप्ति होगी. आपकी कुंडली में नौकरी से सम्बंधित ग्रह योग के बारे में ही आज हम आपको कुछ जरूरी बाते बताना चाहेंगे.
1. जब आपकी कुंडली के 10 भाव में मंगल मकर राशि हो तब आपको एक अच्छी सरकारी नौकरी की प्राप्ति होगी.
2. अगर आपकी राशी में मंगलवार बलवान होकर 1, 4, 7, 10 वे भाव में से किसी भी भाव में हो या फिर 5 या 9 वे भाव में भी होंगे तब भी आपको एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति होगी.
3. यदि आपकी कुंडली में मंगल स्वराशि में या फिर मित्र राशी का होकर 10 वे भाव में हो तो आपको आपकी नौकरी में तरक्की मिलेगी.
4. जिन पुरुषो की कुंडली में 8 वे भाव के अतिरिक्त अन्य किसी भाव में उच्च राशी का हो, तो उन लोगो को भी अच्छी नौकरी की प्राप्ति जरुर होगी.
5. और अगर आपकी कुंडली में 10 वे भाव में सूर्य हो, साथ ही गुरु उच्च राशी में, स्वराशि में या मित्र राशी में हो तो इससे भी आपके जीवन में एक अच्छी सरकारी नौकरी के योग बनते है.
6. यदि आपकी कुंडली के केंद्र में किसी उच्च राशी का ग्रह विद्यमान हो और उसके साथ साथ आपकी कुंडली के केंद्र पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टी हो या फिर आपकी कुंडली के 10 वे भाव में किसी शुभ ग्रह का वास हो या फिर उसकी दृष्टी भी हो तो इससे भी आपके नौकरी में ऊँचे पद की सम्भावना बढती है.
7. अगर आपकी कुंडली में लग्नेश की लग्न पर दृष्टी हो या फिर मंगल की दशमेश में युति हो तो इस तरह से भी आपको अच्छी नौकरी की सम्भावना बढती है.
8. इसके अलावा भी अगर आपके लग्नेश या दशमेश में युति हो तब भी आपको एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति होगी.
तो एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति के लिए आपको अपनी कुंडली के इन ग्रहों और योगो को ध्यान में रखना जरूरी होता है, आपको एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति जरूर होगी.
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