क्रिसमस में होती कैरल्स की धूम, क्या है कैरल का इतिहास
दुनिया को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले प्रभु यीशु मसीह के जन्मदिन क्रिसमस से ठीक पहले उनके संदेशों को भजनों (कैरल) के माध्यम से घर-घर तक पहुंचाने की प्रथा को विश्व के विभिन्न हिस्सों में ‘गो कैरोलिंग डे’ के रूप में मनाया जाता है.
दिल्ली स्थित रोमन कैथलिक चर्च के प्रवक्ता फादर डोमेनिक इमैनुअल के अनुसार क्रिसमस से ठीक पहले कैरोलिंग दिवस के दिन ईसाई धर्मावलंबी रंगबिरंगे कपड़े पहनकर एक-दूसरे के घर जाते हैं और भजनों के माध्यम से प्रभु के संदेश का प्रचार-प्रसार करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘प्रभु की भक्ति में डूबे श्रद्धालुओं के समूह में भजन गायन का यह सिलसिला क्रिसमस के बाद भी कई दिनों तक जारी रहता है. कैरल एक तरह का भजन होता है जिसके बोल क्रिसमस या शीत ऋतु पर आधारित होते हैं. ये कैरल क्रिसमस से पहले गाए जाते हैं.’’
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क्या है कैरल का अर्थ
कैरल्स यानी क्रिसमस के गीत. क्रिसमस आते ही हवाओं में हल्की संगीत की धुन गूंजने लगती है. कैरल्स शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के शब्द केरोलर से भी मानी जाती है, जिसका अर्थ है घूमते हुए नाचना. क्रिसमस गीतों में सबसे पुराने गीत का जन्म चौथी सदी में हुआ. हल्की-फुल्की और गाने में आसान धुनें 14वीं शताब्दी में चलन में आईं. फिर इन्हें इटली में सुना गया. क्रिसमस कैरल्स का सर्वाधिक लेखन और विकास तथा उन्हें प्रसिद्धि 19वीं शताब्दी में मिली है. कैरल्स को नोएल भी कहा जाता है. इन गीतों में पड़ोसियों के लिए शुभकामनाएं दी जाती हैं. इसमें क्रिसमस पर अपने पड़ोसियों के घर जाना और उनके साथ बैठकर क्रिसमस कैरल का आनंद लेना होता है.
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कैरल गाने की शुरुआत कब हुयी
फादर डोमेनिक इमैनुअल ने कहा, ‘ईसाई मान्यता के अनुसार कैरल गाने की शुरुआत यीशु मसीह के जन्म के समय से हुई. प्रभु का जन्म जैसे ही एक गौशाला में हुआ वैसे ही स्वर्ग से आए दूतों ने उनके सम्मान में कैरल गाना शुरू कर दिया और तभी से ईसाई धर्मावलंबी क्रिसमस के पहले ही कैरल गाना शुरू कर देते हैं.’’
फादर डोमेनिक ने कहा कि “गो कैरोलिंग दिवस एक ऐसा मौका होता है जब लोग बड़े धूमधाम से प्रभु यीशु की महिमा, उनके जन्म की परिस्थितियों, उनके संदेशों, मां मरियम द्वारा सहे गए कष्टों के बारे में भजन गाते हैं.” डोमेनिक ने बताया कि प्रभु यीशु मसीह का जन्म बहुत कष्टमय परिस्थितियों में हुआ. उनकी मां मरियम और उनके पालक पिता जोसफ जनगणना में नाम दर्ज कराने के लिए जा रहे थे.उन्होंने कहा कि इसी दौरान मां मरियम को प्रसव पीड़ा हुई लेकिन किसी ने उन्हें रूकने के लिए अपने मकान में जगह नहीं दी. अंतत: एक दंपति ने उन्हें अपनी गौशाला में शरण दी जहां प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ.
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फादर डोमेनिक ने बताया कि भारत में भी यह दिन बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर समेत समूचे पूर्वोत्तर भारत में लोग विशेषकर युवा बेहद उत्साह के साथ टोलियों में निकलते हैं और रात भर घर-घर जाकर कैरल गाते हैं.
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