शास्त्रों के अनुसार देवकार्यों में किस धातु का करें प्रयोग ?
- देवकार्य में निषेध (वर्जित) क्यों है चांदी का उपयोग
- शास्त्रों के अनुसार हर धातु अलग फल देती है
- सोना, चांदी, पीतल और तांबे के बर्तनों का उपयोग शुभ माना जाता है
- धर्मग्रंथों के अनुसार सोने को सर्वश्रेष्ठ धातु माना जाता है
आजकल कुछ लोग शौकिया तौर पर देव पूजा में चांदी का उपयोग करते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि भूलकर भी पूजा में चांदी के पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
भगवान के पूजन में कई प्रकार के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। इसी के साथ ये बर्तन किस धातु के होने चाहिए इस पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है। जिन धातुओं को पूजा के लिए अशुभ माना जाता है, उनका भूलकर भी प्रयोग नहीं किया जाता है, अन्यथा पूजा विफल हो जाती है और पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है। पूजा में बर्तनों गहरा संबंध होता है, शास्त्रों के अनुसार हर धातु अलग फल देती है। सोना, चांदी, पीतल और तांबे के बर्तनों का उपयोग शुभ माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार सोने को सर्वश्रेष्ठ धातु माना जाता है। इसी कारण से हम पाते हैं कि देवी-देवताओं की मूर्तियां, आभूषण आदि सोने से बनाये जाते हैं। सोना एक ऐसी धातु है जिसे कभी जंग नहीं लगता है और हमेशा ही इसकी चमक बनी रहती है।देवता को तांबा अत्यन्त प्रिय है।
“शिवनेत्रोद्ववं यस्मात् तस्मात् पितृवल्लभम्।
अमंगलं तद् यत्नेन देवकार्येषु वर्जयेत्।।
(मत्स्यपुराण 17|23)
अर्थ – चांदी पितरों को तो परमप्रिय है, पर देवकार्य में इसे अशुभ माना गया है। इसलिए देवकार्य में चांदी को दूर रखना चाहिए।
“तत्ताम्रभाजने मह्म दीयते यत्सुपुष्कलम् ।
अतुला तेन मे प्रीतिर्भूमे जानीहि सुव्रते।।
माँगल्यम् च पवित्रं च ताम्रनतेन् प्रियं मम ।
एवं ताम्रं समुतपन्नमिति मे रोचते हि तत्।
दीक्षितैर्वै पद्यार्ध्यादौ च दीयते।
(वराहपुराण 129|41-42, 51|52)
अर्थात…
तांबा मंगलस्वरूप ,पवित्र एवं भगवान को बहुत प्रिय है।
ताँबे के पात्र में रखकर जो वस्तु भगवान को अर्पण की जाती है,उससे भगवान को बड़ी प्रसन्नता होती है।तांबे के बर्तन को पूजा में प्रयोग किया जाने वाला धातु माना जाता है, मान्यता है कि इस धातु के पात्र से सूर्य को जल अर्पित करने की मान्यता है। कहा जाता है कि इस धातु से हर प्रकार के बैक्टीरिया का अंत हो जाता है। इसी कारण से पूजा के बाद तांबे के पात्र मे रखे जल को घर में छिड़कने के लिए कहा जाता है।
इसलिए भगवान को जल आदि वस्तुएं तांबे के पात्र में रखकर अर्पण करना चाहिए। तांबा इन दोनों धातु (सोना-चांदी) की तुलना में सस्ता होने के साथ ही मंगल की धातु मानी गई। माना जाता है कि तांबे के बर्तन का पानी पीने से खून साफ होता है। इसलिए जब पूजा में आचमन किया जाता है तो अचमनी तांबे की ही रखी जानी चाहिए, क्योंकि पूजा के पहले पवित्र क्रिया के अंर्तगत हम जब तीन बार आचमन करते हैं तो उस जल से कई तरह के रोग दूर होते हैं और रक्त प्रवाह बढ़ता है। इससे पूजा में मन लगता है और एकाग्रता बढ़ती है । ताम्बे में जंग नही, काठ लगता है,अर्थात ऊपर की सतह पानी और हवा के साथ रासायनिक क्रिया कर के एक सतह बनाते हैं लेकिन ताम्बे के अंदर प्रवेश नही होता। जंग में लोहा गल के खराब हों जाता है, वैसे भी शुद्धि के लिए मृतिका मार्जन का उपयोग होता है शास्त्रों के अनुसार इसलिए पूजा पाठ के बर्तन शुद्ध ही रहते हैं. क्योकि मृतिका से घिसते वक्त ऊपर की रासायनिक परत उतर जाती है. और अंदर का शुद्ध ताम्बा सामग्री के संपर्क में आता है।
शनिदेव की पूजा में तांबे के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि तांबा सूर्य की धातु है और ज्योतिष शास्त्र में शनि-सूर्य एक-दूसरे के शत्रु हैं। शनिदेव की पूजा में हमेशा लोहे के बर्तनों का ही उपयोग करना चाहिए।
चांदी के पात्रों से ही देवार्चित (अभिषेक पूजन) किया जा सकता हैं लेकिन तांबे के पात्र से दुग्धाभिषेक वर्जित है।।कुछ विद्वानों के अनुसार चांदी एक ऐसी वस्तु है जो चंद्र देव का प्रतिनिधित्व करती है। भगवान चंद्र देव शीतलता के कारक माने गए हैं। रात्रि में शीतलता प्रदान करते हैं। चांदी की खरीदारी से समाज के प्रत्येक मनुष्य को भगवान चंद्र देव का आशीर्वाद स्वरूप शीतलता, सुख-शांति प्राप्त होती है।
पूजा और धार्मिक क्रियाओं में लोहा, स्टील और एल्युमीनियम को अपवित्र धातु माना जाता है। इन धातुओं से मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती हैं। लोहे में हवा, पानी के कारण जंग लग जाता है। एल्युमीनियम धातु के कालिख निकलती है। पूजन में कई बार मूर्तियों को हाथों से स्नान करवाया जाता है। इसलिए सावधानी आवश्यक हैं।