नवरात्र, दूर्गा पूजा की तरह छठ पूजा भी हिंदूओं का प्रमुख त्यौहार है। क्षेत्रीय स्तर पर बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही देवी छठ माता की पूजा अर्चना शुरू हो जाती है और सप्तमी तिथि की सुबह तक चलती है. शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय होता है. इसमें व्रती का मन और तन दोनों ही शुद्ध और सात्विक होते हैं. इस दिन व्रती शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं.
शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का विधान होता है व्रती सारा दिन निराहार रहते हैं और शाम के समय गुड़ वाली खीर का विशेष प्रसाद बनाकर छठ माता और सूर्य देव की पूजा करके खाते हैं. षष्टि तिथि के पूरे दिन निर्जल रहकर शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं और अपने मन की कामना सूर्यदेव को कहते हैं.
सप्तमी तिथि के दिन भी सुबह के समय उगते सूर्य को भी नदी या तालाब में खड़े होकर जल देते हैं और अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना करते हैं. आइए जानते हैं ये चारों तिथि किस दिन पड़ रही हैं और इन सभी दिनों के शुभ मुहूर्त क्या हैं.
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