रमज़ान या रमादान, भाषा के संबोधन में अंतर क्यूँ ? Ramadan or Ramazan ?
रमज़ान शुरू हो चुका है। अक्सर इस पवित्र माह के शुरू होते ही अक्सर सबके मन में एक सवाल उभर कर आता है वो है रमज़ान या रमादान ? दोनों में से सही क्या है या फिर इन दोनों में अंतर क्या है ?
दरअसल रमादान हो या रमज़ान दोनों ही सही है, और दोनों का अर्थ एक ही है। अन्तर सिर्फ भाषा का है. इसको को स्पष्ट रूप से ऐसे कहा जा सकता है कि अरबी भाषा में इस्लामी कैलेंडर के सबसे पवित्र महीने को रमादान कहते हैं जबकि उर्दू और फारसी में रमज़ान। भाषा जानकारों का मानना है कि रमादान मूल रूप से अरबी भाष में कहा जाता है लेकिन फारसी और उर्दू भाषा में द को ज़ कहा जाने लगा और रमादान का स्थान रमजान ने ले लिया.
रमादान शब्द का इस्तेमाल कब से शुरू हुआ ?
1980 के दशक में जब कड़ी देशों में काम करने वाले पाकिस्तानी अपने देश लौटे. उस समय पाकिस्तान में सैन्य शासक जनरल जिया उल हक की सरकार थी और देश पर सऊदी प्रभाव के साथ साथ कट्टरपंथी रंग चढ़ना शुरू हुआ था. उसी समय रमज़ान का स्थान रमादान ने लिया था.
भारत से भी बड़ी संख्या में लोग सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों में काम करने जाते हैं. और वहां का एक्सेंट अपना लेते है. हम इसे इस तरह ले सकते हैं ब्रिताओं या अमेरिका जाने वाले भारतियों की भाषा में वहां का एक्सेंट आना स्वाभाविक है.
रमादान की तरह हाल के सालों में विदा लेते समय ‘खुदा हाफिज’ की बजाय ‘अल्लाह हाफिज’ कहने का चलन भी मजबूत हुआ है. भाषा जानकार इसे पूरी तरह पाकिस्तान में गढ़ा गया संबोधन बताते हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पाकिस्तान में पहली बार ‘अल्लाह हाफिज’ का इस्तेमाल 1985 में सरकारी टीवी चैनल पीटीवी पर एक जाने-माने एंकर ने किया था, हालांकि लोगों को इसे अपनाने में कई साल लग गए.
भाषा के स्तर पर देखा जाए तो ‘खुदा हाफिज’ और ‘अल्लाह हाफिज’ दोनों का एक ही मतलब होता है कि ईश्वर आपकी रक्षा करें. लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि जहां खुदा शब्द का इस्तेमाल किसी भी भगवान के लिए किया जा सकता है, वहीं अल्लाह शब्द का इस्तेमाल विशेष रूप से कुरान में ईश्वर के लिए हुआ है.
एक निजी वेबसाइट ने इस बात का ज़िक्र किया कि पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ की रिपोर्ट कहती है कि 2002 में कराची मे बाकायदा बैनर लगाकर लोगों से कहा गया कि वे ‘खुदा हाफिज’ की जगह ‘अल्लाह हाफिज’ कहें.
कई लोग ‘खुदा हाफिज’ को कहीं ज्यादा बहुलतावादी मानते हैं और इसके मुकाबले ‘अल्लाह हाफिज’ उन्हें ज्यादा धार्मिक नजर आता है.
भाषा जानकारों की मानें तो भाषाएं समय के साथ विकसित होती हैं और आगे बढ़ती हैं, लेकिन कुछ शब्द जब विचारों और सामाजिक ताने बाने को प्रभावित करने लगें तो विचार करने की जरूरत है।