जानिये क्यों कहते ईद-उल-फितर को मीठी ईद
रमजान के 30वें रोजे के बाद चांद देख कर ईद मनाई जाती हैं. इस साल भी 15 या 16 जून को ईद मनाई जा सकती है. ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है. आइये जानते हैं क्यों ईद-उल-फितर को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है. ईद एक तोहफा है जो अल्लाह इज्जत अपने बंदों को महीने भर के रोजे रखने के बाद देते हैं. कहा जाता है के ईद का दिन मुसलमानों के लिए इनाम का दिन होता है. इस दिन को बड़ी ही आसूदगी और आफीयत के साथ गुजारना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अल्लाह की इबादत करनी चाहिए. ईद का यह त्यौहार ना सिर्फ मुसलमान भाई मनाते हैं बल्कि सभी धर्मो के लोग इस मुक्कदस दिन की खुशी में शरीक होते हैं. 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फितर मनाया गया था.
साल में ईद 2 बार मनाई जाती है एक ईद उल अजहा जो बलिदान का प्रतीक माना जाता है और दूसरी ईद उल फितर जिसमें दान , ज़कात को अहमियत दी जाती है. रमजान के ख़त्म होने के बाद ईद के दिन अल्लाह को शुक्रिया अदा करने के लिए किसी गरीब को दान दिया जाता है और इसकी शुरुआत मीठे से की जाती है इसलिए ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहते हैं. इस दिन मस्जिद जाकर दुआ की जाती है और इस्लाम मानने वाले का फर्ज होता हैं कि अपनी हैसियत के हिसाब से जरूरत मंदों को दान करे. इस दान को इस्लाम में जकात उल-फितर कहा जाता है.
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ईद का यह त्यौहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर नए महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है. रमजान के पूरे महीने रोजे रखने के बाद इसके खत्म होने की खुशी में ईद के दिन कई तरह की खाने की चीजे बनाई जाती हैं. सुबह उठा कर नमाज अदा की जाती है और खुदा का शुक्रिया अदा किया जाता है कि उसने पुरे महीने हमें रोजे रखने की शक्ति दी.
इस दिन नए कपड़े पहने जाते हैं, अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से मिलकर उन्हें तोहफे दिए जाते हैं. वहीं पुराने झगड़े और मन-मुटावों को भी इसी दिन खत्म कर एक नई शुरुआत की जाती है.