संन्यासी संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता. गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागा का जीवन है. चलिए जानते हैं नागाओं से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी-
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा साधु
संतों के तेरह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आह्वान अखाड़ा.
नागा साधु का इतिहास
सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की. उनके बाद शुकदेव ने, फिर अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके से नया आकार दिया. बाद में शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया. बाद में अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई. पहला अखाड़ा अखंड आह्वान अखाड़ा’ बना.
नाथ परंपरा
माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है. नवनाथ की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है. गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि की गिनती घुमक्कड़ी नाथों में मानी जाती है.
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नागा उपाधियां
चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं.
प्रयागराज में- नागा
उज्जैन में- खूनी नागा
हरिद्वार में -बर्फानी नागा
नासिक में -खिचडिया नागा
इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है. उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं. कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं. सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है.
कठिन परीक्षा
नागा साधु बनने के लिए 12 वर्ष लग जाते हैं. नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करने में छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं.
नागा साधु की शिक्षा और दीक्षा
नागाओं को सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है. इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है. बाद की परीक्षा खुद के यज्ञोपवीत और पिंडदान की होती है जिसे बिजवान कहा जाता है. अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती है. दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है. श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है.
कहां रहते हैं नागा साधु
यह अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं. कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं. अखाड़े के आदेशानुसार यह पैदल भ्रमण भी करते हैं. इसी दौरान किसी गांव की मेढ़ पर झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं.
नागा साधू बनने की प्रक्रिया
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है. नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं.
कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है. पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है. अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है.
ऐसे होते हैं 17 श्रृंगार
शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं.
लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रूद्राक्ष की माला 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं.
विदेशी नागा साधू
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बडी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है.
यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है.
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधू बनने वाली महिलाए ही नागा बनती थी. इसका कारण यह कि नेपाल में विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना जाता.
ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधू बनती थीं और बाद में नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़ जाती थी.
कहते हैं की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है और निस्सारता , नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट झांकी है .
नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर ताप करते हैं .
प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार “नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है की इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं”.
इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है .
नागा साधु कालांतर मे
सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े में सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया . उद्देश्य यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया जाय. ये नग्न-अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला ,तलवार, मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया जाता था .
इस तरह के भी उल्लेख मिलते हैं की औरंगजेब के खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ दिया था नागा साधू जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं. इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे.
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