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नमस्कार : भारतीय संस्कृति का अभिवादन

भारतीय संस्कृति में मंदिर में दर्शन करते समय या किसी सम्माननीय व्यक्ति से मिलने पर हमारे हाथ स्वयं ही नमस्कार मुद्रा में जुड़ जाते हैं। नमस्‍कार हमारी संस्‍कृति का ऐसा हिस्‍सा है, जो सदियों से हमारी जीवनशैली से जुड़ा हुआ है। नमस्कार करते समय व्यक्ति आगे की ओर झुकता है, उसकी छाती के मध्य में हथेलियां आपस में जुड़ी हुई व उंगलियां आकाश की ओर होती हैं। क्या आप जानते हैं इस नमस्कार मुद्रा के कितने लाभ हैं?

हमारे हाथ के तंतु मष्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से अनाहत चक्र (हृदयचक्र ) और आज्ञाचक्र (मस्तिष्क चक्र) में सक्रियता आती है जिससे जागरण बढ़ता है। ऊर्जा के प्रवाह से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। हृदय में पुष्टता आती है तथा निर्भिकता बढ़ती है।

हाथ जोड़कर नमस्कार करना एक साइकोलॉजी प्रोसेस है। हाथ जोड़कर आप जोर से बोल नहीं सकते हैं और ना ही गुस्‍सा कर सकते हैं। यह एक ऐसा प्रोसेस है जिसका आप पर मनोवैज्ञानिक प्रेशर रहता है। इस प्रकार नमस्‍कार करने से व्यक्ति अपने आप ही विनम्र हो जाता है। नमस्‍कार करना सम्‍मान के साथ, आपके विनम्र होने के भाव को भी प्रकट करता है।

शारीरिक सम्पर्क के माध्यम से किसी व्यक्ति का स्वगत करना जैसे कि हाथ मिलाना या गले लगाना, दो व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-ऊर्जा के प्रवाहको और सुगम बनाता है। इसे कुछ ऐसे समझ सकते हैं जैसे फ़िजिक्स में ऊर्जा का स्थानांतरण पढ़ाया जाता है। नमस्ते अभिवादन की इस पद्धति में शारीरिक सम्पर्क न होने के कारण अन्य व्यक्ति के नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता न्यूनतम हो जाती हैI

इसके आध्यात्मिक लाभों के कारण, नमस्कार करने वाले दोनों व्यक्तियों के बीच की नकारात्मक स्पंदन कम हो जाते हैं और सात्विक स्पंदन का लाभ प्राप्त होता है>

अभिवादन की इस पद्धति के आध्यात्मिक होने के कारण सत्व गुण बढता है और इससे नमस्कार करने वाले दोनों व्यक्तियों के एक दूसरे को नकारात्मक स्पंदनों से संक्रमित करने की संभावना और भी न्यून हो जाती हैं । परंतु यदि किसी व्यक्ति को अनिष्ट शक्ति का कष्ट है तो उसके नमस्कार करने पर कुछ ही नकारात्मक स्पंदनों का प्रवाह होगा। अनिष्ट शक्ति उस व्यक्ति की उँगलियों के माध्यम से अभिवादन किए जानेवाले व्यक्ति तथा वातावरण में नकारात्मक स्पंदन का वमन कर सकती है। तथापि हाथ मिलाने, जिसमें कि शारीरिक संपर्क होता है, की तुलना में, अनिष्ट शक्ति से पीडित व्यक्ति के नमस्कार करने पर भी नकारात्मक स्पंदन का प्रभाव बहुत ही सीमित होता है। नमस्कार भावपूर्ण होने पर नकारात्मक स्पंदन पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं।

हमें गर्व है अपने प्राचीन हिन्दू धर्म और परंपरा पर जिसमें हर एक चीज़ का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार रहा है। देर से ही सही ये सब दुनिया को भी आज समझ आ रहीं हैं।

~Twinkle Tomar Singh की फेसबुक पेज से 

Post By Religion World