हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन से भगवान क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं। अतः इस दिन से चतुर्मास भी शुरू हो जाता है।
इसका अर्थ है कि भगवान चार महीने के लिए शयन करते हैं। इसके उपरांत कार्तिक माह में देवउठान एकादशी के दिन जागृत होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह भी मनाया जाता है। इन चार महीनों में शादी-विवाह, सगाई और शुभ काम नहीं किए जाते हैं।
चातुर्मास की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में राजा बलि अति प्रतापी और दानवीर राजा था, जिसके पुण्य प्रताप की चर्चा तीनों लोक में थी। एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि के दानवीरता की परीक्षा लेने की सोची। तदोउपरांत, भगवान विष्णु वामन रूप में अवतरित होकर राजा बलि के पास पहुंचे। उस समय राजा बलि ने ब्राह्मण वामन का आदर सत्कार कर उनके आने का प्रयोजन पूछा।
तब भगवान विष्णु ने कहा- हे दैत्य राजन! आपके दान-पुण्य की चर्चा बहुत सुनी है। इसके लिए आपसे कुछ मांगने आया हूं। मुझे रहने के लिए तीन पग जमीन चाहिए। यह सुन राजा बलि उपहास मुद्रा में आकर बोले-आपकी जरूर सहायता की जाएगी। इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण से तीन पग ज़मीन लेने की बात कही।
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उस समय भगवान विष्णु ने एक पग में पाताल तो दूसरे पग में नभ को नाप लिया। तीसरे पग के राजा बलि के पास ज़मीन नहीं बचा तो उन्होंने अपना सर ही भगवान के चरणों में दे दिया और कहा कि आप हमेशा पाताल लोक में रहेंगे। इसके बाद उन्होंने भगवान से कहा कि हे वामन देव अपना स्वरूप दिखाएं कि आप कौन है? उस समय भगवान विष्णु ने अपना स्वरूप राजा बलि को दिखाया।
यह जान मां लक्ष्मी व्यथित हो उठी कि भगवान विष्णु अब पाताल लोक में ही रहेंगे। तब मां लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर अपने भाई बना लिया और भगवान को बंधन मुक्त करने की याचना की। मां की याचना को बलि ने स्वीकार कर लिया। हालांकि,चार महीने तक पाताल लोक में रहने का वरदान मांग लिया। कालांतर से भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन अनुसार चातुर्मास में पताल लोक में शयन करते हैं।
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