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जानिए कौन थे वास्तु पुरुष , घर की सुख-शाांति के लिए कैसे रखें इन्हें खुश

वास्तु के अनुसार हर कोई घर का निर्माण करके हंसी-खुशी उस घर में रहना चाहता है लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि यह वास्तु आखिर है क्या ? तो चलिए आज हम घर की खुशहाली में अहम् भूमिका निभाने वाले वास्तु के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश करते हैं-



वास्तु पुरुष है कौन?
असल में वास्तु पुरूष हर मकान का संरक्षक होता है।वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। वेदों में बताया गया है कि स्वयं ब्रह्मा ने वास्तुपुरूष की रचना की और उसे आशीर्वाद दिया कि संसार में हर निर्माण के अवसर पर तुम्हारी पूजा अनिवार्य होगी नहीं तो वह निर्माण शुभ-फलदायी नहीं होगा। यही वजह है कि हर मकान, हर निर्माण के आधार में वास्तु पुरूष का वास होता है।

हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार
शास्त्रों के अनुसार वास्तु पुरूष के मुख से हर समय तथास्तु निकलता रहता है। इसका मतलब वास्तु पुरूष अपने घर में रहने वाले हर व्यक्ति की इच्छा पूरी करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। आपने हमेशा सुना होगा कि घर के बड़े-बुजर्ग बुरी बात मुंह से नहीं निकालने देते थे। इसकी वजह यही है कि वास्तु पुरूष का आशीर्वाद हर समय उसके मुंह से निकलता है और वह कब, किस बात पर स्वीकृति की मुहर लगा दे, क्या पता ? इसीलिए हमेशा अच्छा बोलना ही शुभ रहता है। कुल मिलाकर ये वास्तु पुरूष किसी मकान के निर्माण और उसमें निवास करने वाले सदस्यों की खुशियों को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

क्या है पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता अनुसार वास्तु पुरुष की उत्पत्ति भगवान शंकर के पसीने से हुई है। मतस्य पुराण में वास्तु पुरूष के जन्म से सम्बंधित कथा का उल्लेख मिलता है।
एक बार भगवान् शिव एवं दानवों में भयंकर युद्ध छिड़ा जो बहुत लम्बे समय तक चलता रहा | दानवों से लड़ते लड़ते भगवान् शिव जब बहुत थक गए तब उनके शरीर से अत्यंत ज़ोर से पसीना बहना शुरू हो गया। शिव के पसीना की बूंदों से एक पुरुष का जन्म हुआ। वह देखने में ही बहुत क्रूर लग रहा था। शिव जी के पसीने से जन्मा यह पुरुष बहुत भूखा था इसलिए उसने शिव जी की आज्ञा लेकर उनके स्थान पर युद्ध लड़ा व सब दानवों को देखते ही देखते खा गया और जो बचे वो भयभीत हो भाग खड़े हुए | यह देख भगवान् शिव उस पर अत्यंत ही प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा | समस्त दानवों को खाने के बाद भी शिव जी के पसीने से जन्मे पुरुष की भूख शांत नहीं हुई थी एवं वह बहुत भूखा था इसलिए उसने भगवान शिव से वरदान माँगा “हे प्रभु कृपा कर मुझे तीनो लोक खाने की अनुमति प्रदान करें” | यह सुनकर भोलेनाथ शिवजी ने “तथास्तु” कह उसे वरदान स्वरुप आज्ञा प्रदान कर दी |
फलस्वरूप उसने तीनो लोकों को अपने अधिकार में ले लिया, व सर्वप्रथम वह पृथ्वी लोक को खाने के लिए चला | यह देख ब्रह्माजी, शिवजी अन्य देवगण एवं राक्षस भी भयभीत हो गए | उसे पृथ्वी को खाने से रोकने के लिए सभी देवता व राक्षस अचानक से उस पर चढ़ बैठे | देवताओं एवं राक्षसों द्वारा अचानक दिए आघात से यह पुरुष अपने आप को संभाल नहीं पाया व पृथ्वी पर औंधे मुँह जा गिरा | धरती पर जब वह औंधे मुँह गिरा तब उसका मुख उत्तर – पूर्व दिशा की ओर एवं पैर दक्षिण – पश्चिम दिशा की ओर थे |
पैंतालीस देवगणो एवं राक्षसगणो में से बत्तीस इस पुरुष की पकड़ से बाहर थे एवं तेरह इस पुरुष की पकड़ में थे | इन सभी पैंतालीस देवगणो एवं राक्षसगणो को सम्मलित रूप से “वास्तु पुरुष मंडल” कहा जाता है जो निम्न प्रकार हैं –

1. अग्नि 2. पर्जन्य 3. जयंत 4. कुलिशायुध 5. सूर्य 6. सत्य 7. वृष 8. आकश 9. वायु 10. पूष 11. वितथ 12. मृग 13. यम 14. गन्धर्व 15. ब्रिंगवज 16. इंद्र 17. पितृगण 18. दौवारिक 19. सुग्रीव 20. पुष्प दंत 21. वरुण 22. असुर 23. पशु 24. पाश 25. रोग 26. अहि 27. मोक्ष 28. भल्लाट 29. सोम 30. सर्प 31. अदिति 32. दिति 33. अप 34. सावित्र 35. जय 36. रुद्र 37. अर्यमा 38. सविता 39. विवस्वान् 40. बिबुधाधिप 41. मित्र 42. राजपक्ष्मा 43. पृथ्वी धर 44. आपवत्स 45. ब्रह्मा।

वास्तु पुरूष की प्रतिमा
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर बनवाना शुरू करते समय वास्तु पूजन अवश्य किया जाना चाहिए। इसके अलावा हर शुभ अवसर पर अथवा विवादित मकान के पुननिर्माण के बाद उसमें प्रवेश से पहले वास्तु शांति भी कराई जानी चाहिए। वास्तु शांति के समय वास्तु पुरूष की प्रतिमा मकान की पूर्व दिशा में उचित स्थान पर स्थापित करनी चाहिए। पूजन के बाद वास्तु प्रतिमा को गड्ढे दबा देना चाहिए। इसके साथ ही मकान की सुरक्षा की जिम्मेदारी वास्तु पुरूष की हो जाती है। इस वास्तु पुरूष को भोग लगाकर संतुष्ट रखना अति आवश्यक होता है।



भोग लगाने की विधि
हर पूर्णिमा और अमावस्या को वास्तु पुरूष को नैवेद्य यानि भोग लगाने के लिए घर में बने सभी व्यंजन थाली में अच्छे से सजा कर रखें। ध्यान रखें खाने पर घी अवश्य डला होना चाहिए। आप चाहें तो थाली में एक-दो पत्ते तुलसी के भी ऱख सकते हैं। अब जिस स्थान पर वास्तु पुरूष स्थापित हों, वहां जल से शुद्धि कर एक चौकी रखकर थाली उसपर रखें। अब दाएं हाथ में पानी लेकर दो बार थाली के चारों तरफ घुमाकर धरती पर डालें। इसके पश्चात थाली उठाकर रसोईघर में ले जाएं और घर के मुखिया को वह थाली प्रसाद के रूप में दें। इस तरह वास्तु पुरूष को संतुष्ट करने से घर की सुख समृद्धि सदैव बनी रहती है।

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Post By Shweta