नई दिल्ली, 12 जुलाई : “सरकार लोगों को बरगला रही है…हालांकि प्रसाद या लंगर पर जीएसटी नहीं लगाकर उन्होंने ठीक किया है लेकिन धार्मिक आयोजनों, या अनुष्ठानों पर भी उन्हें जीएसटी हटा देनी चाहिए क्योंकि धार्मिक अनुष्ठान हो या कार्यक्रम यह कमर्शियल नहीं है इसलिए इन पर भी टैक्स नहीं लगना चाहिए.” – शिरडी साईं ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन जयंत ससाने।
सरकार के इस दावे को, कि प्रसाद और लंगर जैसी धार्मिक गतिविधियों पर जीएसटी का कोई असर नहीं होगा, अब धर्म स्थानों से ही चुनौती मिलने लगी है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या गिरिजाघर में प्रसाद, भोजन या लंगर की गतिविधि में लगने वाले सामान पर जीएसटी का सीधा असर होगा। प्रसाद में लगने वाले सामानों पर जीएसटी और उसके ट्रांसपोर्टेशन पर भी जीएसटी टैक्स लगेगा। वित्त मंत्रालय ने साफ किया कि धार्मिक संस्थानों के अन्न क्षेत्र, या मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा और दरगाह पर बंटने वाले प्रसाद पर किसी भी तरह का सीजीएसटी, एसजीएसटी, या आईजीएसटी नहीं लगेगा पर प्रसाद तैयार करने में इस्तेमाल होने कुछ सामग्री और सेवाओं पर जीएसटी लगेगा। मसलन, चीनी, खाने का तेल, घी और मक्खन पर जीएसटी लगेगा। साथ ही इन सामानों को एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचाने पर होने वाले खर्च पर भी जीएसटी लगेगा। वित्त मंत्रालय का कहना है कि इन सामानों और सामग्रियों का कई जगहों और वजहों से इस्तेमाल होता है, इसलिए धार्मिक जगहों पर इनके इस्तेमाल के लिए नए नियम नहीं बनाए जा सकते हैं। पर सरकार के इस दावे को लेकर कई सवाल तब खड़े हुए जब रिलिजन वर्ल्ड ने कर्नाटक के मशहूर अन्नक्षेत्र धर्मस्थला में बात की, जहां हजारों लोग रोज मुफ्त अन्नक्षेत्र में प्रसाद खाते हैं।धर्मस्थला ने हमें बताया कि उन्हें जीएसटी से छूट मिल गई है। हालांकि ये साफ नहीं है कि उन्हें प्रसाद वितरण पर कोई खास छूट मिली है या सामान खरीद पर। जीएसटी के तहत धार्मिक आयोजनों पर कर लगाया गया है, और बड़े आयोजनों पर टैक्स, सेवाकर जैसा लगना है। जाहिर है सरकार धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करना चाहती और वो सबको साथ लेकर भी चलने की हिमायती है, पर धर्म की गतिविधियों दो तरह के नियम कई संस्थानों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है। सरकार के 20 लाख सालाना से ज्यादा कमाने वाले धार्मिक संस्थानों के कई खर्चों को जीएसटी के तहत लाने से संस्थाएं परेशान हैं।
“सेल यानी बेचने पर जीएसटी नहीं लगेगा…तो प्रसाद बेचने पर तो पहले भी वैट नहीं लगता था। उसे बनाने के लिए सामान पर जीएसटी लगेगा, मतलब प्रसाद बनाने में जो सामान लगेगा जैसे तेल, चीनी, घी आदि पर टैक्स लगेगा यहां तक कि इन सामान को एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचाने पर होने वाले खर्च यानी ट्रांसपोर्टेशन फीस पर भी जीएसटी लगेगा। सरकार द्वारा यह कहना भ्रम की स्थिति पैदा करता है कि धार्मिक जगहों के लिए चीनी या घी के लिए अलग से जीएसटी की दर तय करना संभव नहीं है. तो फिर प्रसाद पर जीएसटी न लगाने का प्रपंच क्यों??” – परविंदर पाल, गुरुद्वारा बंगलासाहिब के मीडिया प्रभारी।
वित्त मंत्रालय के मुताबिक, जीएसटी अलग-अलग स्तर पर कर लगाने की व्यवस्था यानी मल्टी स्टेज टैक्स है, ऐसे में इस्तेमाल के आधार पर टैक्स से छूट देना या टैक्स में रियायत देना बहुत ही मुश्किल है. लिहाजा जीएसटी में किसी भी सामान या सेवा के अंतिम इस्तेमाल के आधार पर छूट देने का प्रावधान नहीं है।
जीएसटी का सीधा प्रभाव कैसे किसी धर्म स्थल पर पड़ेगा, इसे समझने के लिए हम आपको तिरुपति मंदिर की सभी गतिविधियों और उनपर पड़ने वाले असर को समझाते हैं। तिरुमला तिरूपति मंदिर में चार प्रमुख तरह की गतिविधि चलती हैं। पहला प्रसाद, दूसरा सोने के सिक्के की बिक्री, तीसरा रहने की जगहों से किराया और चौथा साल में होने वाले बड़े आयोजन जैसे कल्याणमंडपम। सोने के सिक्कों की बिक्री पर 3 फीसदी जीएसटी टैक्स लगेगा, कमरों के किराए जो 1000-2500 के बीच हैं उनपर 12 फीसदी जीएसटी, जिन कमरों के किराए 2500 से ज्यादा है उनपर 18 फीसदी और कल्याण मंडपम में जिस भी जगह का किराया 10,000 के ऊपर होगा, उसपर जीएसटी लगेगा। टीटीडी के एक्जीक्यूटिव आफिसर एके सिंघल ने रिलीजन वर्ल्ड को बताया कि, “सामानों को खरीदने पर जीएसटी लगने के बाद 32 करोड़ का अतिरिक्त खर्चा और धार्मिक यात्रियों को सेवाओं पर 19 करोड़ का अतिरिक्त खर्चा आएगा”। वैसे एके सिंघल ने साफ किया कि “हमारे 86% कमरे 1000 रुपए से नीचे के हैं, इसलिए आम भक्तों पर जीएसटी का कोई खास असर नहीं आएगा”। एके सिंघल ने ये साफ कहा कि “जीएसटी की वजह से टीटीडी पर सीधा असर पड़ेगा, भले ही प्रसाद पर कोई जीएसटी न हो, पर सामान पर जीएसटी से लागत बढ़ेगी ही”। टीटडी ने खुद को जीएसटी के तहत रजिस्टर भी करवा लिया है। तिरूपति को बालों की बिक्री को जीएसटी से छूट दी गई है।
अगर हम देश के बड़े धार्मिक स्थलों पर मुफ्त अन्न क्षेत्र का बात करें तो साई बाबा से जुड़े शिरडी प्रसादालय में रोजाना दस लाख श्रद्धालु न्यूनतम शुल्क देकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। वहीं तिरुमला तिरुपति में 2 लाख लोग मुफ्त प्रसाद लेते हैं। सिखों के सबसे बड़े गुरुदारा स्वर्ण मंदिर में रोजाना 2 लाख और सप्ताहांत में 5 लाख मुफ्त लंगर चखते हैं। दिल्ली में गुरुद्वारा बंगला साहिब में ये संख्या 25 से 30 हजार की है। हरिद्वार में स्थित गायत्री परिवार में भी रोज 10,000 लोग और खास दिनों में 35,000 हजार लोग मुफ्त प्रसाद ग्रहण करते हैं।
बीते कुछ समय से सोशल मीडिया पर ये चर्चा काफी तेज़ थी कि धार्मिक स्थानों पर मुफ्त भोजन की व्यवस्था जैसे गुरुद्वारे में लंगर जीएसटी के दायरे में आ गया है। इसी के बाद वित्त मंत्रालय के ट्वीट करके इस भ्रम को दूर करने की कोशिश की थी। पर स्थिति साफ नहीं हुई है। दरअसल धार्मिक स्थलों में प्रसाद, लंगर या अन्नक्षेत्र में भोजन देने के लिए खरीदे जाने वाले सामान पर पहले भी कोई छूट नहीं मिलती थी। जीएसटी के लागू होने के उनपर कोई असर नहीं पड़ा है, पर भ्रम पैदा होने से सरकार ने सफाई दी है। जीएसटी के दायरे में बड़ी धार्मिक गतिविधियों को लाने की तैयारी सरकार ने कर ली है, इसलिए प्रसाद और लंगर पर साफगोई जरूरी थी। धार्मिक स्थानों पर होने वाली बड़ी गतिविधियों पर सरकार की नजर है। संस्थानों मे हर रोज करोड़ों का चढ़ावा आता है और संस्थान कई सामाजिक और दैनिक गतिविधियों से ट्रस्ट की उपादेयता सिद्ध करते रहते हैं। पर दस-बीस लाख से ऊपर के धार्मिक कार्यक्रमों पर लगने वाले जीएसटी से कई संस्थान प्रभावित होंगे और उनकी कोशिश होगी कि सरकार पर दबाव बनाकर इससे राहत पाएं। स्वर्ण मंदिर के श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह जी ने प्रसाद और लंगर पर सीधे तौर पर सरकार से धार्मिक संस्थानों और धर्म स्थानों से जीएसटी हटाने की मांग की है।
“चाहे गुरुद्वारा हो, चाहे मंदिर हो, चाहे मस्जिद हो या चर्च हो या कोई भी धार्मिक संस्थान जीएसटी से मुक्त होने चाहिए। अकेले दरबार साहिब में रोजाना करीब 2-3 लाख लोगों को मुफ्त लंगर खिलाया जाता है, तो जरा सोचिये पूरे भारत वर्ष में न जाने ऐसे कितने मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च होंगे जो यह नेक काम कर रहे हैं। इन स्थानों पर बिना किसी भेदभाव के लंगर या भंडारा खिलाया जाता है, इसलिए सरकार को धार्मिक संस्थानों की मर्यादा को देखते हुए उन्हें पूरी तरह से जीएसटी मुक्त करना चाहिए” – ज्ञानी गुरबचन सिंहजी, जत्थेदार, अकाल तख्त साहिब।
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