शनिचरी अमावस्या : 18 नवंबर 2017: क्या और कैसे मनाएं ?
18 नवंबर 2017 को शनि अमावस्या पर 30 साल बाल शोभन योग बन रहा है। यह योग दान-पुण्य से लेकर बाजार से खरीदी नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ रहेगा। इस दिन शनि के साथ बुध-चंद्रमा की युति से फसलों और व्यापार में वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं। साथ ही पूजा-पाठ से शनि की कृपा भी बरसेगी।
मार्गशीर्ष अमावस्या का एक अन्य नाम अगहन अमावस्या भी है। इस अमावस्या का महत्व कार्तिक अमावस्या से कम नहीं है। जिस प्रकार कार्तिक मास की अमावस्या को लक्ष्मी पूजन कर दिपावली बनाई जाती है. इस दिन भी श्री लक्ष्मी का पूजन करना शुभ होता है. इसके अतिरिक्त अमावस्या होने के कारण इस दिन स्नान- दान आदि कार्य भी किये जाते है. अमावस्या के दिन पितरों के कार्य विशेष रुप से किये जाते है. तथा यह दिन पूर्वजों के पूजन का दिन होता है.
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इस शनि अमावस्या पर शोभन योग निर्मित हो रहा हैं जो इसके पूर्व वर्ष 1987 में बना था। आगे भी लगभग इतने वर्ष के बाद ही यह योग बनेगा। इसके साथ साथ सके अलावा गजकेसरी योग और बुधादित्य योग के साथ-साथ कालसर्प दोष की भी निष्पत्ति हो रही है। इसलिए इस बार की शनिश्चरी अमावस्या खरीदारी के साथ-साथ पितृ दोष, शनि की ढैया या साढ़े साती की शांति के लिए विशेष शुभ है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि , शनिवार (18 नवंबर) को विशाखा नक्षत्र में शोभन योग रहेगा। इसके पहले शनि अमावस्या पर शोभन योग वर्ष 1987 में बना था। आगे भी लगभग इतने वर्ष के बाद ही यह योग बनेगा। वर्तमान में शनि धनु राशि में मार्गी है। इस समय वृश्चिक, धनु व मकर राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है, वहीं वृषभ व कन्या राशि पर ढय्या चल रही है।
शोभन योग क्यों है विशेष ?
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि आनंद आदि 27 योगों में शोभन नाम का भी एक योग है। यह योग यदि शनिवार के दिन हो तो इससे उस दिन का, तिथि और नक्षत्र का प्रभाव कई गुना अधिक बढ़ जाता है। साथ ही तिथि में अन्य कोई दोष हो तो वह भी इस योग के होने से समाप्त हो जाते हैं। इसलिए शनिवार को अमावस्या आने पर शनि अमावस्या का तो योग बन ही रहा है, लेकिन इस दिन संयोग से शोभन नाम का योग होने से यह पर्व के महत्व को कई गुना अधिक बढ़ाएगा।
जानिए क्या होगा इस योग का प्रभाव..?
इस शनिश्चरी अमावस्या पर दोपहर 12.48 बजे तक गजकेसरी योग रहेगा। इसके उपरांत बुधादित्य योग के साथ काल सर्पदोष की भी निष्पत्ति हो रही है। इस योग के कारण शिक्षा एवं न्याय क्षेत्र में काम करने वाले और विद्यार्थियों के लिए शुभ रहेगा। जलीय वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान, ऑटो मोबाइल सेक्टर में महंगाई बढ़ेगी।
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इस शनिवार को विशाखा नक्षत्र में शोभन योग रहेगा। इसके पहले शनि अमावस्या पर शोभन योग वर्ष 1987 में बना था। आगे भी लगभग इतने वर्ष के बाद ही यह योग बनेगा। ग्रहों की गणना अनुसार वर्तमान में शनि धनु राशि में मार्गी है। इसके साथ ही दो दिन के लिए चंद्र-बुध वृश्चिक राशि में युतिकृत रहेंगे। चूंकि बुध चंद्रमा के पुत्र होने से पिता-पुत्र का वृश्चिक राशि में शनि के साथ होने पर द्विरदश: योग निर्मित होगा।
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चंद्रमा वनस्पति तो बुध व्यापार का सूचक होने से आने वाले समय में फसलों और कारोबार दोनों में वृद्धि करेंगे। वहीं वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल भी कन्या राशि में परिभ्रमण कर रहा है। यह अवस्था भी परस्पर मंगल-बुध का राशि परिवर्तन कहलाती है। इससे नए कार्यों में रही बाधाएं दूर होकर सफलता मिलेगी। राजनीतिक क्षेत्र में देखें तो आने वाले समय में सत्ता परिवर्तन की भी संभावना बन रही है।
शनि भक्तों के लिए विशेष फलदायी है शनि अमावस्या
शनि अमावस्या शनि भक्तों के लिए विशेष फलदायी मानी जाती है। शनि अमावस्या को न्याय के देवता शनिदेव का दिन माना गया है। जिन जातकों की जन्म कुंडली या राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया का असर होता है, उनके लिये यह महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि शनि अमावस्या पर शनि देव की पूजा-अर्चना करने पर शांति व अच्छे भाग्य की प्राप्ति होती है। ज्येष्ठ मास में दान-पुण्य के लिए ये सबसे अच्छा दिन माना जाता है। शनि मंदिरों में इस दिन दर्शन-पूजन से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
शनि भगवान सूर्य तथा छाया के पुत्र हैं। मृत्यु के देवता यमराज शनिदेव के बड़े भाई हैं। आकाश मंडल में सौर परिवार के जो 9 ग्रह हैं, उनमें यह दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। शनिदेव यदि रुष्ट हो जाएं तो राजा को रंक बना देते हैं और यदि प्रसन्न हो जाएं तो आम आदमी को खास आदमी बना देते हैं। पुराणों के मुताबिक शनिदेव हनुमान भक्तों पर खास प्रसन्न रहते हैं और उनकी मदद करते हैं क्योंकि एक बार हनुमानजी ने शनिदेव को रावण से बचाया था। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को उनका विधिवत पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाया जाना चाहिए, इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन पीपल को जल देने से भी शनिदेव को प्रसन्न किया जा सकता है।
शनिदेव के बारे में मान्यता है कि वह जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं तो ढाई वर्ष तक उसमें रहते हैं। जन्म राशि से जब शनि चौथे या आठवें हो तो अढैया कहते हैं जोकि काफी कष्टप्रद होता है। जब शनिदेव बारहवें स्थान पर आते हैं तो व्यय अधिक होता है। माना जाता है कि जीवन में शनिदेव एक बार या किसी−किसी के जीवन में चार बार आते हैं। प्रथम बार तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन दूसरी बार में यह नींव हिला देते हैं और तीसरी बार भवन को उखाड़ फेंकते हैं तथा चौथी बार अच्छे खासे को बेघर कर देते हैं।
शनि की क्रूरता के संबंध में एक कथा भी प्रचलित है जो इस प्रकार है…
शनिदेव के वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंची, पर श्रीकृष्ण के परम भक्त शनिदेव भगवान के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की जैसे कोई सुध ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गयी। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिये उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। उन्होंने अपनी पत्नी की इच्छा तो पूरी कर दी लेकिन चूंकि उनकी पत्नी पतिव्रता एवं धार्मिक महिला हैं, इसलिए उनका शाप निष्फल नहीं जा सकता। कहा जाता है कि तभी से शनिदेव किसी पर भी दृष्टिपात करने से बचते हैं।
ज्योतिष में शनि को ठंडा ग्रह माना गया है, जो बीमारी, शोक और आलस्य का कारक है। लेकिन यदि शनि शुभ हो तो वह कर्म की दशा को लाभ की ओर मोड़ने वाला और ध्यान व मोक्ष प्रदान करने वाला है। इनकी शान्ति के लिये मृत्युंजय जप, नीलम−धारण तथा ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिये। शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो ‘ओम शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का जाप करें। जप का समय सन्ध्या काल होना चाहिये।
इस समय जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि की साढ़े साती अथवा शनि की ढय्या चल रही है वह सभी जातक विशेष पूजा से शनि को खुश कर सकते हैं। इस दिन शनि मंदिरों में दर्शन कर, तेल चढ़ाएं, गरीबों को वस्त्र, कंबल और छतरी आदि दान करें। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में कुछ मंत्रों का भी उल्लेख है।
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जैसे शनि वैदिक मंत्र ‘ओम शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न:।’, शनि का पौराणिक मंत्र ‘ओम नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसंभुतं नमामि शनैश्चरम।’ मान्यता है कि इन मंत्रों का नियमित कम से कम 108 बार जप करने से शनि के प्रकोप में कमी आती है।
शनि अमावस्या पर शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और भी कुछ उपाय किये जा सकते हैं जैसे- काले तिल, काले कम्बल, काला छाता, तेल आदि का दान करना सबसे उत्तम माना जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनि अमावस्या के दिन शनि स्त्रोत का 11 बार पाठ करने से कुंडली में मौजूद अशुभ ग्रहों को असर तुरंत दूर होता है। इस दिन शनि के मंत्र ओम प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: का जाप करना फलदायी होता है। इस दिन पितरों का श्राद्ध भी अवश्य करना चाहिए, शनि अमावस्या पर सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान अष्टक का पाठ करने से भी शांति मिलती है।
1- यदि आपकी कुण्डली मेँ शनि उच्च का है और फायदेमँद है तो ये मँत्र जपेँ।
ॐ शं नो देवीरभिष्टयः आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिःस्त्रवन्तु नः।।
2- यदि आपकी कुण्डली मेँ शनि सम है यानि न अधिक फायदा दे रहा है न नुकसान तो ये मँत्र जपेँ।
ॐ निलान्जनम समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम । छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
3- यदि आपकी कुण्डली मेँ शनि नीच का है तो ये मँत्र जपेँ।
ॐ प्राँ प्रीँ प्रौँ सः शनैश्चराय नमः।।
4-यदि आपकी कुण्डली मेँ शनि उच्च या नीच का होकर कष्टकारी है तो ये मँत्र जपेँ।
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
5- यदि आप कुण्डली मेँ उच्च या नीच के शनि के कारण व्यापार मेँ नुकसान उठा रहे हैँ या रोग ग्रस्त हैँ तो ये मँत्र जपें।
सूर्य पुत्रो दीर्घ देहो विशालाक्षःशिवप्रियः।मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मेशनिः॥
6- यदि दुर्घटना या पारिवारिक कष्ट या अन्य कोई बाधा हो तो ये मँत्र जपेें।
कोणस्थ पिंगलो ब्रभू कृष्णो रौद्रो दंतको यमः।सौरिः शनैश्वरो मन्दः पिप्पालोद्तः संस्तुतः॥एतानि दशनामानी प्रातः रुत्थाय य पठेतः।शनैश्वर कृता पिडा न कदाचित भविष्यती॥
7- सभी शनि कृत पीड़ाओं से मुक्ति के लिये दशरथ कृत शनि स्तोत्र का भी पाठ करना उत्तम हैँ, जो अत्यँत प्रभावशाली है।
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