प्रेरक कथा : स्वाबलंबन ही सच्चा पुरुषार्थ है
गुरु नानक देव अक्सर शिष्यों को लेकर भ्रमण पर निकल जाते थे. इसी तरह चलते-चलते उन्हें ज्ञान की बातें भी बता देते थे. एक बार नानक देव अपने कुछ शिष्यों को साथ लेकर कहीं जा रहे थे. उनका प्याला उनके हाथ से छूटा और नाले में गिर गया. उन्होंने अपने शिष्यों की ओर देखा और कहा, ‘मेरे प्याले को कोई उठा लाओ. अभी कोई कुछ निर्णय लेता कि एक शिष्य सफाई कर्मचारी को तलाशने के लिए दौड़ पड़ा ताकि प्याले को नाले से निकाला जा सके.
नानक देव उस शिष्य के इस प्रयास से संतुष्ट नहीं थे. वह हमेशा अपने शिष्यों को समझाया करते थे कि कोई भी काम छोटा नहीं होता है. स्वावलंबन ही सच्चा पुरुषार्थ है. कर्तव्य हमेशा पूजनीय होता है और जो भी काम आए उसे पूजा समझकर पूरा करना चाहिए. हमें दूसरों पर कम से कम निर्भर रहना चाहिए. स्वाभाविक ही उस शिष्य का सफाईकर्मी को बुलाने के लिए जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा. वह इस बात से भी निराश हुए कि उनके शिष्य छोटा सा कार्य करने में हिचक रहे हैं.
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नानकदेव जी का एक शिष्य था लहिणा. जब पहला शिष्य सफाईकर्मी को ढूंढने गया उसी समय लहिणा अपनी जगह से तुरंत उठा और प्याला निकालने के लिए गंदे नाले में झुका. उसने देखा प्याला नाले के तल में पड़ा है. लहिणा ने अपने कपड़े ऊपर उठाए और वह नाले में उतर गया. हाथों को गंदे नाले में डालकर उसने प्याला उठा लिया. इतने में पहला शिष्य सफाईकर्मी को लेकर आ गया. गुरु नानकदेव ने सब शिष्यों के सामने लहिणा की भरपूर प्रशंसा की. हालांकि उन्होंने दूसरे शिष्य को फटकारा भी नहीं. भाव तो सब समझ ही गए थे. वहां खड़े सभी शिष्यों को उन्होंने फिर से समर्पण भाव से कर्तव्य निभाने की सीख दी. यही लहिणा आगे चलकर गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए